Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 299
________________ एक संधि कप्पिय- कुरु-करिंद-कुंभ-त्थल धय- - लंगूल सरासण-आणणु विणिवाइए वण्णासा- णंदणे जिह गयवरु गयवरहो समत्थहो करे गंडीउ करेवि रणत्थले ते-विदसहिं सिलासिय वाणेहि रु पडिवारउ पंचहिं ताडि रहु खंडिउ चक्क विक्खिण्णई सत्ति सुदक्खिणेण तो पेसिय तेल्ल - घोय वर - कुसुमेहिं अंचिय विदु णराहिउ उरे विहिं वाणेहिं Jain Education International कडूढिय - कित्ति-धवल-मुत्ताद्दलु । वियरइ रण-वणे णर-पंचाणणु ॥ १ [१] किय-गय- घड-भड - थड - कडवंदणे भिडिउ सुदक्खिणु रणमुद्दे पत्थहो सत्तर्हि सरेहिं विदु वच्छ-त्थले तिहि माहउ जम- दूय- समाणेहिं ४ ते स-धणु महा-धर पाडिउ सारहि -तुरय- सरीरई भिण्णइ असइ व सु-पुरिसेण परिपेसिय घत्ता एंति घणंजएण स-वि वंचिय । पर-विण चल्लिउ मेल्लिउ पाणेहि ॥ [२] देवेहि कलुयल किउ गयणंगणे सुवहु गरिदेहि सारिउ वेढिउ छहिं सामंत - सहासेहि हम्म विविहाउह - विच्छोहे हि कुरुहुं गियंत पडिउ रणंगणे दोणहिं (?णेण भणिउ सुदक्खिणु मारिउ हि अवसरे यि णाम- पगासेहिं -जोहे हि रहवर - गयवर - हयवर - For Private & Personal Use Only ८ ४ www.jainelibrary.org

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