Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
________________
२८
रिट्टणेमिचरिउ जहिं णिग्गय कय-जय-सिरि संगम फुरुहुरंत तुरमाण तुरंगम तहिं सिणि-पुत्तु पत्त थिउ रक्खणु णं रामायणे रामहो लक्खणु
घत्ता रह-गय-तुरय-णरिंद रण-रहेस कहि-मि ण माइय । गह-गण-रक्खस-रिक्ख णं एकहिं मिलेवि पधाइय ॥ ९
एत्तहे चंदके उ तव-गंदणु विविह-महाउहु कंचण-संदणु सेय-वत्थु सिार-खंड-पसाहणु कणय-पुच्छ-सेयउसो (?) वाहणु एत्तहे भीमसेणु जस-लुद्धउ वर-वेरुलिय-मइंद-महद्धउ लउडि-विहत्थु पयाव-पसाहणु रीरी-वण्ण-तुरंगम-वाहणु एत्तहे मदि-पत्त लहुयारउ हरिण-केउ कोताउह-धारउ एत्तहे रहे सहएउ समच्छरु हंस-केउ करवाल-भयंकरु एत्तहे गिद्ध -चिधु सूलाउहु भइमि भयावण-वयणंभोरुहु ओए-वि अवर वि तव-सुय-किंकर धाइय धोय-धार-पहरण-कर
८
घत्ता
सेण्णु असेसु-वि एवं कुरुवहं उप्परि णाई
९
तो रउरव-रव-पंडव-रण-तूरई गलगज्जियई मत्त-मायंगहं गुरु-चिक्कार महारह थक्कई णर-णारायण-पूरिय-संखहं गर-गंडीव-सउरि-मारंगहं जाउ महाहउ पडियई चिंधई
स-रहसु सण्णहेवि पयट्टउं । दीसई जमकरणु विसट्टउं ॥ [८] हयमाणहं गय मुहहं व कूरई भीसावण-हिसियई तुरंगहं चवल वहल-कलयल पाइकई कण्ण-कडुउ रउ हुयउ असंखहं सद्द सुणेप्पिणु कुरुव-कुरंगह गं गिरिवर-सिहरई पवि-विद्धई
४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328