Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 172
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फरस ( १५८ ) फाब उदा० धोर धुनि बौलैं, डोलैं दिगति-दिगंतान लौं, - बिहारी प्रोज-भरे अमित मनोज फरमार ए। फलंका-संज्ञा, पु० [फा० फलक] आकाश, नम । -द्विजदेव उदा. कहै पद्माकर त्यों करत फंकरत, फैलत फरस-संज्ञा, पु० [अ फर्श] बिछौना, बैठने फलात फाल बांधत फलंका में । के लिए बिछाने का वस्त्र । -पद्माकर उदा० फहर फुहारन की फरस फबी है फाब । फलंगना -क्रि० प्र० [हिं० फलाँगना] कूदना, - पद्माकर फाँदना, एक जगह से उछल कर दूसरी जगह फरस गलीचन के बीच मसनंद ताप जाना। मखमली गोल गोल गुलगुली गाला में । उदा० पैठि परयो पल मॅाहि फलंगि गो, कौन -ग्बाल कहो पकरै परछाहीं। - बेनी प्रवीन फरसबंद-संज्ञा, पु० [प्र. फर्श+फा० बंद] फलक-संज्ञा, पु० [सं०] पट्टी, पटल, स्थान बिछौना बैठने के लिए बिछानेका वस्त्र । आकाश [प्र. फलक] । उदा० (क) दूध कैसो फेन फैल्यौ आँगन परसबंद। उदा० मन मिलें मिले नैन केसोदास सविलास, -देव - छवि-पास भूलि रहे कपोल-फलक में। (ख) कहै पदमाकर फरागत फरसबंद, -केशब फहर फुहारन की फरस फबी है फाब । फलकना-क्रि० प्र० [हिं० फड़कना] फड़कना, -पद्माकर उमड़ना २ विकासोन्मुख होना । फरस्सों--संज्ञा, पु० [हि० फर] प्रतिद्वंदिता, उदा० १. नैन छलकौंहै बर बैन बलकोंहै औ मुकाबला, सामना । कपोल फलकों है झलकौ हैं मए अंग है। उदा, फरस्सों फिर फूल फंदै फरक्क । लगे -दास हाथ ही के इसारें मुरक्क। -पद्माकर फलके-संज्ञा, पु० [सं० स्फोटक हिं० झलका] फरागत-वि० [फा० फराख] विस्तृत, लम्बा फफोला, झलका, छाला । चौड़ा । उदा० पाइन में फलके परि परि झलके दौरत उदा० कहै पद्माकर फरागत फरसबंद, फहर थल के बिथित भई । -पद्माकर फुहारन की फरस फबी है फाब । फलातना-क्रि० प्रा० [हिं० फलाँग+न (प्रत्य॰)] -पद्माकर कूदना, फांदना, उछलना । फरास-संज्ञा, पु० [अ० फर्राश] दीपक आदि उदा० कहै पद्माकर त्यों करत फंकरत, जलाने वाला नौकर, सेवक, खिदमतगार । फैलत फलात फाल बांधत फलंका से । उदा० व्याज करि चांदनी को मैन मजलिस काज -पद्माकर चन्द ह फरास चारु चाँदनी बिछाई है। फसूकर-संज्ञा, पु० [?] फेन के करण । -शिवकवि उदा० ऐसा फैलि परत फसूकर मही में मानो •फरिका-संज्ञा, पु. [हिं० फाटक] फाटक, दरवाजा। तारन को बृद फूतकारन गिरत है। उदा० खोलि खोलि खरिकन के फरिकन गायें -पद्माकर पानि उबेरी। -बकसीहंसराज फस्त-संज्ञा, स्त्री० [अ० फस्द] नस को छेद कर फरिया -- संज्ञा, स्त्री [ब्र] प्रकार का लंहगा, शरीर का गंदा खून निकालना ।। साड़ी, धोती। मु० फस्द खुलवाना--शरीर का दूषित रक्त उदा० सिर ओढ़े उढ़ोनी कसे छतिया फरिया निकलवाना। पहिरे फहराती फिरै। उदा० मूड़ घुटाय प्रौ मूछ मुड़ाय त्यों फस्त फरी-संज्ञा, स्त्री [सं० फल] चमड़े की छोटी खुलाय तुला पर बैठ्यो। -माधव कवि गोल ढाल । फाब-संज्ञा, स्त्री० [हिं० फबन] शोभा, छटा उदा० बाँधे बखतरी काँधे परी समसेरी फरी, | उदा० फहर फुहारन की फरस फबी है फाब । लखि न परी है काहू सखिन सकात है । --पद्माकर -बेनी प्रवीन | औरे औरे फूलन पै दुगुन फबी है फाब । फूले फरकत लै फरी पल कटाच्छ करबार ।। -द्विजदेव -टाकुर For Private and Personal Use Only

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