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रूरो
-ग्वाल
देव
( १६९.
रोक रूरो-वि० [हिं० रूर] संतप्त, गर्म ।
दूती बढ़ावती रैधौं । -बेनी प्रवीन उदा० पौन तौ न लाग्यौ सखी, जोन्ह लाग्यौ । रैनका--संज्ञा, स्त्री० [सं रेणका] १. रेणुका,
दुख देन, मीन लाग्यौ रूरी होन, गंजे मौर बालू २. मिट्टी। भोर लौं।
-गंग
उदा० १. बोधा कवि कपट की प्रीति भीति रूसे-संज्ञा, पू० [सं० ऊटरूष] एक प्रकार का
रैनका की बेद हत जैसे सुमन की सेवा है। पौधा जिसके फल और पते श्वास आदि की
-बोधा औषध है, मड़सा ।
रैनी--संज्ञा, स्त्री० [सं० रजनी] १. खूटी, सोने उदा० तेरी मुख छबि लखि लखै. होत चन्द ता चाँदी के तार को खीच कर बढ़ाने वाला गुल्ली तूल । कंद खाइ के चूसिय, ज्यों रूसे को
२. रजनी ३. तराबोर करने वाला, अनुरक्त फूल ।
-मतिराम करने वाला [क्रि० स०] रेइ-वि० [सं० रंजन] रंजित अनुरक्त, डूबी उदा० .. भाव बढ़ चित चाव चढ़े रंग-रैनि हुई, पगी हई।
किधोंरसराज की रैनी ।
-घनानन्द उदा. महा कमनीय रमनीय रमनीयहू रमावै नर २. दारिद दरैनी, सुभ संपति मरेनी भूरि, मन ह के रूप रज रेइ कै।
-देव
३. पूरन सरैनी, जस, भक्त-रंग-रैनी है। रेखना--क्रि स० [हिं० प्रवरेखना ] देखना, अवलोकन करना।
रैल--संज्ञा, स्त्री० [हिं रेल] अधिकता, भरउदा० धाय घरा सबही के कहे हौं बिकाय गई मार, समूह २. बहाव । इनकी रुचि रेख्यौ।
उदा० सक्र जिमि सैल पर अर्क तम फैल पर रेखिये वि० [हिं० रेखा] अंकित, २, शोभित,
बिघन को रेल पर लम्बोदर लेखिये। प्रकाशित ।
-भूषण उदा० भाल पर रेखा बाल दोषाकर रेखिये । रोगराज--संज्ञा, पु०[हिं० राज रोग] राज रेज-संज्ञा, स्त्री० [?] व्यवस्था, प्रबन्ध ।
रोग, राजयक्ष्मा, एक असाध्य रोग। उदा० पौढ़ी बलि सेज, करौं औषद की रेज बेगि, | उदो० हाहा दीन जानि याकी बिनती लीजिए __ मैं तुम जियत पुरबिले पुन्य पाए हो।
मानि, दीजै पानि औषदि बियोग रोगराज की।
___~- घनानंद रेजा संज्ञा, पु० [फा० रेजा] कपड़े का टुकड़ा, रोचन--संज्ञा, पु. [सं० रोचना ] गोरोचन, कपड़े का थान ।।
एक सुगंधित पीले रंग का पदार्थ जो गौ के उदा बादर न होंय बह मांतिन के रेजा ये. । पित्त में से निकलता है। असाढ़ रंगरेजा रंग सूखिबे को डारे हैं । उदा० रोचन को रुचि केतकि चंपक फूल में अंग
-ठाकुर सुवास भर यो है।
--केशव रेफ- वि० [?] अधम, पापी ।
रोचना--क्रि. स० [सं०. रुचि] रुचि दिखलाना, उदा० रेफ समोरध जाहिर वास सवारहि जा प्रेम प्रदर्शित करना । घरमौ सफरे।
-दास उदा० लोचत फिरत रग रोचत रुचा पै रुच रेवा.- संज्ञा, स्त्री० [सं०] कामदेव की पत्नी, सोच नहीं होत हैं बिधाता बिसरे को यो। रति, प्रेम ।
-ठाकुर उदा० मालती को मिलि जब मलय कूमार पाये. रोज--संज्ञा, पु. [फा०] बिषाद, आपत्ति, रेवा रस रोमनि जगाय नींद नासी है।
कठिनाई।
-मालम उदा रोज सरोजन के परे हंसी ससी की होय । रेह-संज्ञा, स्त्री० [सं. रेखा] रेखा ।
-बिहारी उदा० नील नलिन दल सेज मैं. परी सुतन तनू
नारि उरोजवतीनि के रोजनि कान्ह उचाट देह । लसै कसौटी मैं मनो तनक कनक की
मरे जिउ रोजनि ।
--दास मतिराम रोझ--संज्ञा, स्त्री० [देश ] नील गाय । रँधौं-संज्ञा, पु० [देश॰] झगड़ा, अन्तर, फक। उदा कूदत न मृगज चनक मूदे साखामृग प्रास उदा० नौल किसोर लला मनमोहन. बीच की | दृग बूंद बरसत रोझ रहचर। --देव
सेनापति
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