Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 225
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सगबगे ( २११) सतेसा उदा० सेखर भई है मोहि बिरह बिहाली देखु । २. सोचि सटुपटु मो मो धरु भो न घटु रजनी घरी है सेष माली सब सखि के। चैन चित को उचटु भो सुकत बंसी रटु -- चन्द्रशेखर मो। -बेनी प्रवीन सगबग-वि० [मनु०] १. द्रवित, अधीर, [ सटा-संज्ञा, स्त्री० [?] १. सिंह की गर्दन के २. सराबोर, लथपथ । बाल, प्रयाल २. विस्तार-फैलाव । उदा० १. हे निपट सगबगे हिये प्रेम सों, जाहर उदा... इन्द्र की पटा लौं नरसिंह की सटा लौं, सजी रुखाई। -सोमनाथ मारतंड की छटा लौ छटा छहरै प्रताप २. पूछे क्यों रूखी परति, सगिबगि गई की। -पदमाकर सनेह । -बिहारी २. बैन सुधा से सुधा सी हँसी बसुधा में सचतना-क्रि० सं० [सं० स+चेतन] सचेत सुधा की सटा करती हो। -पद्माकर होना । सतंक्रत-संज्ञा, पु० [सं० शतक्रतु] सौ यज्ञ करने उदा. सुनत पनूप रूप नूतन निहारि तनु, प्रतनु __ वाला, इन्द्र। तुला में तनु तोलति सचति है। -देव । उदा० काम महीप को दीपति ऊपर एक सहस्र सचना-क्रि० स० [सं० संचय] संचित करना, सतंक्रत वारे । -बोधा इकट्ठा करना । सतपत्त-संज्ञा, पु० [सं० शतपत्त ] शतदल उदा० देव कदै सोबत निसंक मंक भरी परजंक कमल । ___ मैं मयकं मुखी सुषमा सचति है। -देव उदा० कबि आलम ये छबि ते न लहे जिन पुंज सचाना-क्रि० सं० [सं० संचयन] १. पूरा लये कलबत्तन के । तन स्याम के ऊपर यो करना, बदला लेना २. सचेत करना । सोभित लगि फूल रहेसतपत्तन के उदा० सासहि नचाइ मोरी नदहि नचाइ खोरी, -मालम बैरनि सचाइ गोरी मोहि सकुचाइ गौ। सतमष-संज्ञा, पु. [सं. शतमख] सौ यज्ञ करने -रसखानि _ वाला इन्द्र । सज-संज्ञा, स्त्री० [हिं० सजावट] शोभा, उदा० तेज पायौ रवि ते मजेज सतमष पास,अवनी सौन्दर्य । को भौगिबौ अधिक नाथ नीति की । उदा. इंदिरा के डर की धुरकी, अरु साधुन के -सूदन मुख की सुख की सज । -देव | सतर-वि० [सं० सतर्जन] वन, टेढ़ी, तिरछी । सजीउ--वि० [सं. सजीव] जिंदा, ज्यादा, उदा० चितई करि लोचन सतर सलज सरोष अधिक। सहास । -बिहारी उदा० बाट मैं मिलाइ तारे तौल्यौं बह बिधि सतराना-क्रि० प्र० [सं० सतर्जन] अप्रसन्न होना प्यारे, दीनी है सजीउ पाप वापर परत नाराज होना । है। सेनापति उदा० मोहति मुरति सतराति इतराति साहचरज सटक-संज्ञा, स्त्री० [मनु० सट से] १. पतली, सराहि पाहचरज मरति क्यों । -देव लचकीली छड़ी२. चुपके से भागना, सतीत-वि० [सं० स+प्रा० तित-गीला] उदा०१. गोने की बधूटी गुन टोने सों कछूक करि, साद्र, गीला । सोने सो लपेटो लिये सोने की सटक सी। उदा० वा बरसै जलधारन सों रसधारन याहु --बेनी प्रवीन __ सतीत करी है। -ठाकुर २. हहर हवेली सुनि सटक समरकंदी. सतेसा-संज्ञा, पु० [2] जहाज, नाव । धीर न परत धुनि सुनत निसाना की। उदा० मानसर सुभ थान तिहि ढिग नव तमालनि -गंग पाति । चढ़ि सतेसनि बढ़ि महा रुचि करत सटपट-संज्ञा, पु० [अनु॰] १. भय, डर २. सुख बहुँ भांति । -घनानन्द चकपकाहट । प्रेम सतेसा बैठि के रूप-सिंधू लखि हेरि । उदा. सेनानी के सटपट, चन्द्र चित चटपट, जुगल माधुरी लहरि को, पावैगो नहिं फेरि । प्रति अति पटपट अंतक के भोक के। -ब्रजनिधि -केशव मृगमद आड़ लिलार तिय, कीनी है छबि For Private and Personal Use Only

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