Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 237
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुजनी ( २२३ ) सुरगना मैं उपमाहिं सुचै । - पालम । उदा० नीर भरे नैना बात काहू को सुनैना अति सुजनी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० सजनी] प्रियतमा, रोवत सुनैना नाह बाह को चित चित । सुन्दरी, सजनी, नायिका।। -नंदराम उवा. कहीं लख चौपरा हरखें। कहीं सुजनीन सुपास-संज्ञा, पु० [देश॰] पाराम, सुभीता । कों परखें। -बोधा उदा० चेट कु देइ भुलाइ करै जु सुपास की। सुठार-वि० [सं० सुष्ठु] १. सुडौल, सुंदर । तौन विदूषक जौन करै परिहास कौं । उदा० छूटे बार टूटे कण्ठसिरी ते सुठार मोती - दास ऐसे कुच बीच युगलोल दरि ढरि जात । सुबटना--क्रि० स० [सं उद्वर्तन । सगंधन बेनीकवि पादि का लेप करना, सरसों और चिरौंदी सुठेवा- वि० [हिं० सुठार, सं० सुष्ठु] सुडौल, आदि के लेप को शरीर में मलना। सुन्दर, अँगुली के उपयुक्त नापवाली। उदा० खोलि के कपाट दीने अन्तर कपट रंग उदा० रेवा नीकी बान खेत मंदरी सवा नीकी, रापटी मै भोट ह्व सुगंध सुबटत ही। मेवा नीकी काबुल की सेवा नीकी राम -देव की। --श्रीपति सुबुक वि० [फा० सुबुक! . सुन्दर, खूबसूरत सुतहार संज्ञा, पु० [सं० सूत्रकार ] बढ़ई, २. हलका । कारीगर। उदा० सबुक है कौनकार बूबू कहौ लाख बार उदा० हीरन मनि मानिकन चुनी दै केहि सुतहार लाखह के दीन्हें प्रांखि अखि मैं मिलावो बनायो। बकसी हसराज नार । -नंदराम सुथरी-वि० [सं० स्वच्छ] स्वच्छ, निर्मल २. सुभंग-वि० [सं० सु मंग] बक्र, टेढ़ी। सुन्दर । उदा० सिहरै नव जोबन रंग अनंग सुभंग अपाउदा० हा सुथरी पुतरी सी परी उतरी चुरि गनि की गहरै। -रसखानि चूमि लगी चटकावन । -पजनेस सुभवना क्रि० प्र० [सं० सु + भ्रमण] घूमना, सुदेस-वि० [सं० सु+देश ] श्रेष्ठ, उत्तम, चक्कर काटना । सन्दर, श्रेष्ठ पद वाले, उच्च पद वाले । उदा० परी जाको लगी तन सो सुभवै कहा जाने उदा० संपति केस, सदेस नर नवत, दुहनि इक प्रसूत बिथा बझरी । -तोषनिधि बानि । -बिहारी सुभावक-वि० [सं स्वाभाविक] स्वाभाविक, सुषरमा-संज्ञा, स्त्री० [सं० सुधर्मा] देव-सभा। प्राकृतिक । उदा० जाति न बरगनी प्रभा, जनक नरिंद सभा, उदा० प्रीतम मीत ममीतनि सो मिलि प्रातहि सोभा ते सुधरमा त सौगुनी बिसेखिये। माय हैं प्रीति सुभावक । -देव - सेनापति सुमना -संज्ञा, स्त्री० [सं०] मालती का पुष्प । सुधा-संज्ञा, पु० सिं०] चूना २. अमृत । उदा० तासों मन मान्यो मधुप, सुमना सुमन उदा० फटिक सिलान सों सुधारयो सुधामंदिर । बिसारि। -मतिराम --देव सुरंग संज्ञा, पु० [सं०] . एक प्रकार का कित्ति सुधा दिग भित्त पखारत चंद मरी- घोड़ा २. लाल रंग । चिन को करि कूचो । -भूषण उदा० आली तूं कहति है कुरंग दृग प्यारे के, सुधि -संज्ञा, स्त्री० [हिं० सुध] १. चेतना २. सु पाले हैं सुरंग अवलोकि उर पानिये। स्मृति । -दास उदा० फिरि सुधि दै, सुधि द्याइ प्यो, इहिं सुरकि--संज्ञा, पु० [सं० सुर] माल की प्राकृति निरदई निरास । _ बिहारी का तिलक जो नाक पर लगा होता है। सुनानं-संज्ञा, पु० [सं० सु+अन्त] सुमन्त । प्रदा० हनत तरुन मृग तिलक सर सुरकि भाल उदा० चली लक्ख च्यारं सु संग मिठारा पका भरि तानि । -बिहारी सुनानं सबै काम वारो। -जोधराज सुरगना-क्रि० अ० [सं० सु+ हिं• लगना ] सुनैना-संज्ञा, स्त्री० [सं० सुलोचना सुलोचना, । किसी वस्तु में लग जाना, चिपट जाना, मासक्त मेघनाद की स्त्री। होना । For Private and Personal Use Only

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