Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 244
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -देव हरिवधू हेसम हरिवधू-संज्ञा, स्त्री० [सं०]एक लाल कीड़ा ।। हलब्बी-संज्ञा, स्त्री० [हलब देश] १. तलवार जो पावस काल में दिखाई देता है। विशेष २. हलब देश का शीशा । बीरबधूटी उदा. हेरीजु हलब्बी सुंडनि गब्बी सीस हलब्बी उदा. हरित तृणनि हरिवधू संदरी ।। सी चमक -पद्माकर __ मनु महि प्रोढ़े सबुज चुंदरी । -रधुराज २. मैही-बेस वाफदा की कंचुकी कसी है श्वेत, हरिहरि--अव्य० [हि. हरूस] धीरे-धीरे, शनैः शनैः नारंगी लसी है मनो संपुट हलब्बी के। उदा० हरिहरि हेरतहू बरिबरि उठे अंग धरि धरि -तोष धेनु, घन, कनक दिवाइयत । हलमलाना-क्रि०अ० [हि० हलबली] हलबलाना, हरीफ- संज्ञा, पु० [अ० हरीफी प्रतिद्वंदी, शत्रु, खलबली पैदा होना, घबरा जाना । दुश्मन । उदा० दिसि की उजियारी जानी जोन्ह मीति उदा० उन बासुरी बजाया उन गाया बेस महरानी, हलमले द्विजराज जाम सीम छूटि है रागिनी वा पक्का है हरीफ ल खि -आलम लक्का सा दुनै गया । -तोष हला-संज्ञा, पु० [अ० हाल]१. हाल, समाचार हरूक-क्रि० वि० [हि०हरूमा=फुर्ती] खबर २. शोर , हल्ला , ३. पाक्रमण । - शीघ्रता से जल्दी-से। उदा० लई छलु कै हरि हेत हला मिल ई उदा ० धन की चमू संग दामिनी हरूकें टूकें, नबला नव कुंजनि माहीं। -आलम गरज चहूँ के, दूंके नाहर सी पारती । २. बेनी बडे बड़े बंदन ते यक बारहि वारदि -वाल कीन हलासी। -बेनी हरुवा-वि० [हि० हलका] हलका, तुच्छ, ओछा हलाक-वि० [अ०हलाकत] मारा हमा, हत, घायल उदा० गुरुवे से गुरुजन, हरुवे न हुजौ अब,। उदा. ऊँची नासा पर सजल, चमकत मुकता हितकरि मोसे, महा हरुवे की ओर सो । चार । करत बुलाक हलाक मन, रहिहैं नाहिं -देव संमार । - नागरीदास हरेबै-संज्ञा, पु. [ हि० हरा ] हरेवा । हलाका - वि० [प हलाक ]घातक, मारने वाला हरे रंग की एक चिड़िया, हरो बुलबुल । उदा० सुथरी सुसीली सुजीसीली सुरसीली उदा० परे वे अचेत हरेवै सकल चिरु चेत, प्रति, लंक लचकीली काम-धनुष हलाका । पलक-भुजंगी-डसे लोटन लोटाएरी। -दास सी। -तोष हरौली-संज्ञा, स्त्री० [हि० हरौल ] हलुका-संज्ञा, स्त्री० [अनु.] के, हलक। सेना के अग्रमाग की सरदारी । उदा० दांतन कि किरचन रंग रंगे। बहु बिधिउदा० पब की बेर फेर सँग लागौ लिय रुधिर हलुका लगे। -केशव . बलराम हरौली । -बक्सीहंसराज हवाई-संज्ञा, स्त्री [५०] एक प्रकार की पातिश हरी-हर संज्ञा, पु० [?. ]लुटालूट । बाजी, बान । उदा० प्रान हरोहर है घनामानंद लेह न उदा० पूस को भान हवाई कृसान सो मूढ़ को ज्ञान तो पब लेहिंगे गाहक । --घनानंद सो मान तिहारो -दास हलकना-क्रि० अ० [स०हल्लन] हिलना, डोलना, हसंती-संज्ञा, स्त्री० [सं०] अँगीठी,। विचलित होना, । माग सुलगाने का लोहे का चूल्हा । माते माते हाथिन के हलका हलक डारो-गंग। उदा० हैंउत हसंती सी बसंत में बसंती, । हलका-संज्ञा, पु० [अ० ] हाथियों का झंड रितु ग्रीषम की ऊषम पियूष सुखकारी सी । माते माते हाथिन के हलका हलक डारो। --देव -गग हसम--संज्ञा, पु. [अ० हशम स्वामी के लिए । सत्ता के सपूत माऊ तेरे दिए हलकनि, लडने वाले। नौकर-चाकर.सेना. । बरनी उचाई कबिराजन की मति मैं । २. वैभव, ऐश्वयं [५० हशमत] -मतिराम । उदा० १.करि पग्ग साह नीसान भुल्लि । For Private and Personal Use Only

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