Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 248
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हौव श्रीन फिरी बाबरी ह्व बूझि सो कहौ धौं कैसे | २. धैर्य । होसोंगी। -रघुनाथ | उदा० चुरेल ह्व लागी अजौं लगि लाज, सुकौलगि हौद-संज्ञा, पु० [अ० हौज ] हौज, तालाब । बाँधे हिये मह हयाई । -देव उदा० कहर को क्रोध किधौं कालिका को कोलाहल हयाऊ-संज्ञा, पु० [हिं० हिय-हियाव ] हलाहल हौद लहरात लबालब को । साहस, धैर्य । -पद्माकर उदा०देवज सराहिये हमारी न्याउ हयाक करि हयाई-संज्ञा, पु० [हिं० हियाब १.साहस, हिम्मत | नाहित पहित चेत करतो जूचीततो।-देव श शंबर--संज्ञा, पु० [सं०] १. एक प्रकार का मत्स्य | उदा० मानो सनक्षत्र शिशुमार चक्र कुंडली में संकर २. एक-राक्षस जिसे काम देव ने मारा था । षन अनल मभूक महराति है। --पजनेश उदा ० १. विषमय यह सब सुख को धाम । शम्बर | शुभोदर-- वि० [ शुमोदर ] भाग्य शाली, रूप बढ़ावै काम । -केशव उदा० शुभतन मज्जन करि स्नान दान करि पूजे शत्रुहंता-संज्ञा, पु० [सं०] शत्रुघ्न । पूरण देव । मिलि मित्र सहोदर बंधु शुमोदर उदा० बिदा ह चले राम पै शत्रुहंता । चले साथ कीन्हे मोजन भेव । -केशव ___ हाथी रथी युद्धरंता । --केशव श्रोन -संज्ञा, [पु० स० शोण] रक्त, शोणित खून शिशुमारचक्र--संज्ञा, पु० [सं०] सौर जगत, ग्रहों उदा० कान्ह बली तनस्रोन की छछलसे प्रति, सहित सूर्य । जग्योपवीत सों मेलि ज्यों। -पालम For Private and Personal Use Only

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