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-देव
हरिवधू
हेसम हरिवधू-संज्ञा, स्त्री० [सं०]एक लाल कीड़ा ।। हलब्बी-संज्ञा, स्त्री० [हलब देश] १. तलवार जो पावस काल में दिखाई देता है।
विशेष २. हलब देश का शीशा । बीरबधूटी
उदा. हेरीजु हलब्बी सुंडनि गब्बी सीस हलब्बी उदा. हरित तृणनि हरिवधू संदरी ।।
सी चमक
-पद्माकर __ मनु महि प्रोढ़े सबुज चुंदरी । -रधुराज २. मैही-बेस वाफदा की कंचुकी कसी है श्वेत, हरिहरि--अव्य० [हि. हरूस] धीरे-धीरे, शनैः शनैः नारंगी लसी है मनो संपुट हलब्बी के। उदा० हरिहरि हेरतहू बरिबरि उठे अंग धरि धरि
-तोष धेनु, घन, कनक दिवाइयत ।
हलमलाना-क्रि०अ० [हि० हलबली] हलबलाना, हरीफ- संज्ञा, पु० [अ० हरीफी प्रतिद्वंदी, शत्रु,
खलबली पैदा होना, घबरा जाना । दुश्मन ।
उदा० दिसि की उजियारी जानी जोन्ह मीति उदा० उन बासुरी बजाया उन गाया बेस
महरानी, हलमले द्विजराज जाम सीम छूटि है रागिनी वा पक्का है हरीफ ल खि
-आलम लक्का सा दुनै गया ।
-तोष
हला-संज्ञा, पु० [अ० हाल]१. हाल, समाचार हरूक-क्रि० वि० [हि०हरूमा=फुर्ती]
खबर २. शोर , हल्ला , ३. पाक्रमण । - शीघ्रता से जल्दी-से।
उदा० लई छलु कै हरि हेत हला मिल ई उदा ० धन की चमू संग दामिनी हरूकें टूकें,
नबला नव कुंजनि माहीं।
-आलम गरज चहूँ के, दूंके नाहर सी पारती ।
२. बेनी बडे बड़े बंदन ते यक बारहि वारदि -वाल कीन हलासी।
-बेनी हरुवा-वि० [हि० हलका] हलका, तुच्छ, ओछा हलाक-वि० [अ०हलाकत] मारा हमा, हत, घायल उदा० गुरुवे से गुरुजन, हरुवे न हुजौ अब,।
उदा. ऊँची नासा पर सजल, चमकत मुकता हितकरि मोसे, महा हरुवे की ओर सो ।
चार । करत बुलाक हलाक मन, रहिहैं नाहिं -देव संमार ।
- नागरीदास हरेबै-संज्ञा, पु. [ हि० हरा ] हरेवा ।
हलाका - वि० [प हलाक ]घातक, मारने वाला हरे रंग की एक चिड़िया, हरो बुलबुल ।
उदा० सुथरी सुसीली सुजीसीली सुरसीली उदा० परे वे अचेत हरेवै सकल चिरु चेत,
प्रति, लंक लचकीली काम-धनुष हलाका । पलक-भुजंगी-डसे लोटन लोटाएरी। -दास
सी।
-तोष हरौली-संज्ञा, स्त्री० [हि० हरौल ]
हलुका-संज्ञा, स्त्री० [अनु.] के, हलक। सेना के अग्रमाग की सरदारी ।
उदा० दांतन कि किरचन रंग रंगे। बहु बिधिउदा० पब की बेर फेर सँग लागौ लिय
रुधिर हलुका लगे।
-केशव . बलराम हरौली ।
-बक्सीहंसराज हवाई-संज्ञा, स्त्री [५०] एक प्रकार की पातिश हरी-हर संज्ञा, पु० [?. ]लुटालूट ।
बाजी, बान । उदा० प्रान हरोहर है घनामानंद लेह न
उदा० पूस को भान हवाई कृसान सो मूढ़ को ज्ञान तो पब लेहिंगे गाहक । --घनानंद सो मान तिहारो
-दास हलकना-क्रि० अ० [स०हल्लन] हिलना, डोलना, हसंती-संज्ञा, स्त्री० [सं०] अँगीठी,। विचलित होना, ।
माग सुलगाने का लोहे का चूल्हा । माते माते हाथिन के हलका हलक डारो-गंग। उदा० हैंउत हसंती सी बसंत में बसंती, । हलका-संज्ञा, पु० [अ० ] हाथियों का झंड
रितु ग्रीषम की ऊषम पियूष सुखकारी सी । माते माते हाथिन के हलका हलक डारो।
--देव -गग हसम--संज्ञा, पु. [अ० हशम स्वामी के लिए । सत्ता के सपूत माऊ तेरे दिए हलकनि,
लडने वाले। नौकर-चाकर.सेना. । बरनी उचाई कबिराजन की मति मैं ।
२. वैभव, ऐश्वयं [५० हशमत] -मतिराम । उदा० १.करि पग्ग साह नीसान भुल्लि ।
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