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उप में सपा अन्याय की राज्यो दियो इमाम
हरामला सामा
हमाम ( २२९ )
हरिलांकी हमाम-संज्ञा, पु० [अ० हम्माम] स्नानागार, हरहाइन-सज्ञा, स्त्री० [हि० हरहाई] नटखट स्नान करने की कोठरी जो गरम कर दी जाती | या बदमाश गाय ।
उदा० कपिला नाहिं न कूटिंये हरहाइन के दोस । उदा० मैं तपाइ त्रयताप सौं राख्यौ हियौ हमामु ।
-बोधा -बिहारी हरबल-सज्ञा, पु० [तु० हरावल] सेना का
पहले अग्रभाग । हमाल-संज्ञा, पु० [अ० हम्माल] मजदूर, बोझ ढोने वाला।
जदा० साजि चमू मधुसाह-सु । हरबल दल करि अग्र ।
--केशव उदा. दीबे की बडाई देखौ ऊदावत रामदास,
हरवाइल- सज्ञा, स्त्री० [ देश ] चंचल या तेरे दिये माल को हमाल हेरियत है।
बदमाश गाय । -गंग
उदा० जिन दौरियो उपनये हरुबाइल के पाछे । हमेल-संज्ञा, पु० [अ० हमायल 1 १. एक
-बकसी हसराज प्राभूषण जो हाथियों के गले में पहनाया जाता
हरसिद्धि-सज्ञा, स्त्री [स. हर+सिद्धि] है। २. स्त्रियों के गले का वह प्राभूषण जिसमें
शंकर की विजया, मांग । माला की भाँति सिक्के गहे रहते हैं।
उदा. गंग धकानि धुकी हर-सिद्धि, कबंध के उदा० १. वारिद से, गिरि से गरुवे, सुप्रसिद्ध
धक्कन सोंधर धूके।
--- गंग भुसंड भयानक मारे हेम हमैल विभूषित भूषन, गंडनि भौंर भ्रमैं मतवारे । -गंग
हरहर-सज्ञा पु०[सं० हरहृत ]शंकर सेहत, २. लूटती लोक लटै सफूल हमेल हिये सुज
शंकर द्वारा पराजित, कामदेव, मनोज
उदा. हरि बिनु हर योई हरष हरहर हठि, हों ही टॉड न होती।
-देव
हारी हेरि सूधो मगुन चहति है।-आलम हरकाना-क्रि० प्र० [अनु॰] हड़काना, लल
हरा-संज्ञा, स्त्री [सं०] हर की स्त्री, पार्वती कारना । - उदा० करुदै सुदामा सीस बरुदै बरिंगिनि कौ थरु
हर कयौ तिलक हराहू कियो हारु है। दै अकूरे हिये हरषि हराकि दै। -देव
-केशवदास
हराहर-संज्ञा, स्त्री० [१] छीना-झपटी हरजै-संज्ञा, पु० [फ० हज:] हानि, क्षति ।
ऊधमबाजी २. सपं[हर+हार] उदा० सेज परी सफरी सी पलोटति ज्यों ज्यों
उदा० दिन होरो-खेल की हराहर मरयौ हो घटा घन की गरजै री। त्यों पद्माकर
सु ती, भाग जागें सोयौ निधरक-नैत काँपि लाजन तं न कहे दुलही हिय को हरजरी ।
-घनानन्द -पद्माकर
हरि - संज्ञा पु० [सं०] घोड़ा, अश्व । हरट्ट-वि० [सं० हृष्ट] मोटे, हृष्ट-पुष्ट । उदा० हरिदल खुरनि खरी दलमली । उदा० हैबर हरट्ट साजि गैबर गरट्ट सबै पैदर के
खचरहिं धूरि पूरि मनु चली। -केशव ठट्ट फौज जुरी तुरकाने की। -भूषण हरिन-संज्ञा, पु० [सं० हिरण्य 1 हिरण्य सोना । हरदी-सज्ञा, स्त्री० [स० हरिद्रा] निशा, रात्रि उदा० लाडिली कुंवरि की भुलानी अकुलानी । २. एक पौधा जिसकी जड़ मसाले में काम
जाकी तौलियत मानिक के तुला सो हरिन के पाती है।
- देव उदा० राधे पै माधौ पठे हरदी अलि सों कहियों हरिमास-संज्ञा, पु० [सं०] अगहन मास । इहि को रस चाखै ।
-रघुनाथ उदा० प्रान सग हरि ले गये मास हरत हरि मास हरमखाना-सज्ञा, पु० [अ० 1 जनानखाना,
-रसलीन अन्तःपुर बेगमों का रहने का महल ।
हरिलांकी वि० सं० हरि=सिंह + लंक=कटि] उदा. हिरन हरमखाते स्याही हैं सुतुरखाने १. सिंह के समान कटिवाली। पाढ़े पीलखाने औ करंजखाने कोस हैं। उदा० १.तू हरिलंकी चलांकी कर वह बाकी --भूषण । बड़ी बडरी अखियां की।
-तोष
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