Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 236
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुचे सुडान ( २२२ ) सुडान-संज्ञा, पु० [सं शूडिन] हाथी । __गये सुख सातौ । --केशव - उदा० भूपर भूप हुते जिते ते सब फिरो बखान सुखासन-संज्ञा, पु० [सं०] सुखपाल नाम की राना हय दीन्हैं, तिन्हें दाना देइ सुडान । सवारी । -गंग उदा० सुखद सुखासन बहु पालकी । फिरक सुकति-संज्ञा, स्त्री० [सं० शुक्ता] शुक्ता, सीपी ___ बाहिनी सुख चाल की। -केशव २. सूलि, सुन्दर उक्ति। सुखित-वि० [सं० शुष्क] १. शुष्क, सूखा २. उदा०किधौं रसबातनि की रसायन राखे भरि आनंदित । __ सोने की सुकति किधों सुवन सुबाम है। उदा० जाही के भरुन कर पाइ अब नित पति. -केशव सुखित सरस जाके संगम की पाइ के। सुकैचो - वि० [सं० सकुचन ] सिमटी हुई -सेनापति संकुचित । सुखिर-संज्ञा, पु० [देश॰] साँप का बिल । उदा० लौद सी लंक लचे कचनार संभारत चूनरी । उदा० सुखिर पानंद घन जंत्र संचरित रव संकुचारु सुकैची। लित सुर चकित थकित चित तुमुल मचि । -पद्माकर -घनानन्द सुकेसी-सज्ञा, स्त्री० [स० सकेशी] १. इन्द्र याकी असि सापिनि कढ़त म्यान सुखिर की एक अप्सरा २. सन्दर केशों वाली नायिका सों, लहलही श्याम महा चपल निहारी है। उदा० पेखे उरबसी ऐसी और है सुकैसी देखी दुति -गुमान मिश्र मैनका हु की जो हियर हरित है। सुगनराय-संज्ञा, पु० [सं. सुगंधनराज] गंध -सेनापति राज नाम का एक पुष्प, सुगंधन राज, चमेली। सुख--वि० [बुं०] सहज, स्वाभाविक ।। उदा० बैठी हुती जु बिरहनी फिरक देह मनाय । उदा० जाके सुख मुखबास ते बासित होत दिगन्त । मेरे पाए हे सखी लिये सुगंधनराय । -केशव -मतिराम सुखपाल-संज्ञा, पु० [सं०] एक प्रकार की सुगाना-क्रि० स० [देश॰] संदेह करना, शक पालकी। करना । उदा० गरुड़ विमान त्यागे हय गय रथ त्यागे । उदा० पौगुन गनैया लोग सौगुन सुगातु हैं। सुखपाल त्यागि सुखमानन अतोलते। -आलम -ब्रजनिधि सुगुनाना-क्रि० प्र० [?] उद्बुद्ध होना, सुखमीलो-वि० [सं० सुषुमा] सुषुमा से युक्त, जगना । सौन्दर्यपूर्ण, सुन्दरी । उदा० कहि ठाकुर भागि सँजागिन की उनही के उदा० निरखि नवीन बैस बारिज बलित माल हिये सुगुनान लगे। -ठाकुर सेखर सुबन पान कंज सुखमीली के। सुगैया-संज्ञा, स्त्री० [बुं०] चोली, कंचुकी। -चन्द्र शेखर उदा० मोहिं लखि सोवत बिथोरिगो, सुबेनी बनी, सुखबक्ता-संज्ञा, पु० [सं० सुख + वत्ता] मीठा तोरिगो हिये को हार,छोरिगो सुगैया को । बोलने वाला, चाटुकार, खुशामदी । -पद्माकर उदा० जोई प्रतिहित की कहै, सोई परम अमित्र सुघराई-संज्ञा, स्त्री० [अज] चतुराई, निपुणता, सुख वक्ताई जानिये, संतत मंत्री मित्र ।। २. सुन्दरता। -केशव उदा० १. वाही घरी ते न सान रहै न गुमान सुखसात-संज्ञा, पु० [सं० सप्त+सुख । सात रहै न रहै सुघराई । -दास प्रकार के सुख, यथा-खान, पान, परिधान, सुचे-वि० [सं० शुचि] स्वच्छ, साफ, निर्मल, ज्ञान, गान, शोभा तथा संयोग। पवित्र । उदा० बहबह.यो गंध, बहबह.यो है सुगंध, स्वास उदा० तहाँ रस के बसि ारस में सु गये तजि महमह.यो, पामोद विनोद सुख सात के । संगम सैन सुचेते। -यालम -देव सुचे-संज्ञा, पु० [सं० सु+चय] राशि, समूह । एकहि बेर न जानिये केसव, काहे ते छूटि | उदा० नखनाहर बंक हिये हरि के जटित म्यनि For Private and Personal Use Only

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