Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 226
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्तु ( २१२ ) सबूर ऐन । बदन-रूप-सरबीच मैं, मन सतेसा मैंन । भाव तनोत हैं। -रघुनाथ -नागरीदास | सपरना-क्रि० सं० [बं०1 स्नान करना । सत्त-संज्ञा, पु० [सं० सत्य] सत्य, यथार्थ । | उदा० देखे दुति ना परत पाप रेते पा परत सापरे उदा० कुचसंघ सकीन न सत्त कहैं। -बोधा ते सुरसरि सांप रेंग तन में । -पालम सव-वि० [सं० सद्य] १. ताजा, नवीन २. कूटेव २. पट पाखे मखु कांकरे सपर परेई संग। कुवान [संज्ञा, स्त्री.] । -बिहारी उदा०१.दार्यो से दसन मंद हंसनि विसद मरी, सद सपेट-संज्ञा, पु० [हिं० सपाटा] झपट, लपेट । भरी सोभा मद भरी अंखियांन मैं । -देव उदा० निज प्रायु सिंह-सपेट ते सु बचाइ घर २. सदन सदन के फिरन की सद न छुटै, को ल्यावही । -पद्माकर हरिराय रुचे जितै बिहरत फिरौ, कत बिह- सफजंगी-वि० [म. सफ+जंग] पंक्तिबद्ध लड़ने रत उरु आय । -बिहारी वाली (सेना)। सदागति-संज्ञा, पु० [सं०] पवन, हवा । उदा० मान-मंद-भंगी सफजंगी सैन संगी लिये, रंगी उदा० चंडकर कलित, बलित बर सदागति, रितु पावस फिरंगी स्वांग लायो है। कंदमूल फलफूल दलनि को नासु है। -पद्माकर -केशव सफर-संज्ञा, स्त्री० [सं० शफरी] बड़ी मछली, सदी-वि० [सं० सद्यः] १. ताजा टटका २. - सौरी मछली । तुरन्त शीघ्र ३. इसी समय, प्राज ही [अव्य]। उदा० परे मुरझाइ ग्राह-सफर फरफराइ, सुर कहैं उदा० होत प्रभात ही बेनी प्रवीन जू, आये महा हाइ को बचावै नद-नाइक। -सेनापति उर माल सदी है। -बेनी प्रवीन सबज-वि० [फा० सब्ज] हरे रंग वाली, हरी । सद्धना-क्रि० स० [सं० साधन 1 साधना, उदा० रंग रस भीनी झीनी कंचकी सबज छोरि किसी कार्य की सिद्धि करना, संधान करना । निकसि लसी हैं अनी जुगल उरोज की। उदा० हुप अति उदारता हृदय मद्धि । जग सुखित -पद्माकर करौ सब साँच सद्धि । -सोमनाथ सबल-वि० [सं०] १, सौन्दर्य युक्त, सुन्दरता सद्धर-वि० [हिं० स+प्रद्धर] १. साधार, सहित २. चित्र-विचित्र (सं० शबल) शक्तिशाली २. उपयुक्त, ठीक, असली । उदा० १. कुंतल ललित नील भ्रकूटी धनुष नैन उदा० बिजली करै कलेवा दवनी सों राखै दवा कुमुद कटाक्ष बाण सबल सदाई है। राह को खवावै मेवा सो सद्धर भाट है। -केशव -गंग २. बहुत भाव मिलि के जहाँ, प्रगट करै सघाना-क्रि० स० [देश॰] सिखाना। इकरंग । उदा० धाये फिरो ब्रज में, बधाए नित नंद ज के, सबल भाव तासों कहैं जिनकी बुद्धि गोपिन सधाये नचो गोपन की भीर में । उतंग ॥ -दास -देव | सबील-संज्ञा, स्त्री० [अ० ] उपाय, प्रयत्न, सधोनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० संधिनी ?] १. कामना तरकीब। पूर्ति का गुण। उदा० बचे न बड़ी सबीलहूँ चील्ह घोंसवा सि । उदा० सुन्दरता अति मैन दियो अरु दीन्ही मनो -बिहारी सुरधेनु सधीनी । सबीह-संज्ञा, स्त्री० [ फा० शवोह ] चित्र, सनाका-संज्ञा, पु० [?] संगीत आदि का समां, __ तस्वीर। शब्द की तुमुल ध्वनि मुहा०, सनाका बंधना- उदा० हित गाढ़ी पहो इत ठाढ़ी कहा लिख काढ़ी समांबं घना [संगीत प्रादि का] । सबीह सी सोहती हो। -चन्द्रशेखर उदा० कहै पदमाकर त्यों बांसुरी की धुनि मिलि सबूर-संज्ञा, पु० [फा० सबू] शराब का घड़ा, रहयो धि सरस सनाको एक ताल को। शराब। -पद्माकर | उदा० 'ग्वाल कवि' अंबर-अतर में अगर में न सनाह-संज्ञा, पु० [स० सन्नाह] कवच, बखतर। उमदा सबूर हू मैं, है न दीपमाला मैं । उदा० बाँधे सनाह तुरंगन पै चढ़े वेष भयानक -ग्वाल -तोष For Private and Personal Use Only

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