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सत्तु ( २१२ )
सबूर ऐन । बदन-रूप-सरबीच मैं, मन सतेसा मैंन ।
भाव तनोत हैं।
-रघुनाथ -नागरीदास | सपरना-क्रि० सं० [बं०1 स्नान करना । सत्त-संज्ञा, पु० [सं० सत्य] सत्य, यथार्थ । | उदा० देखे दुति ना परत पाप रेते पा परत सापरे उदा० कुचसंघ सकीन न सत्त कहैं। -बोधा
ते सुरसरि सांप रेंग तन में । -पालम सव-वि० [सं० सद्य] १. ताजा, नवीन २. कूटेव
२. पट पाखे मखु कांकरे सपर परेई संग। कुवान [संज्ञा, स्त्री.] ।
-बिहारी उदा०१.दार्यो से दसन मंद हंसनि विसद मरी, सद सपेट-संज्ञा, पु० [हिं० सपाटा] झपट, लपेट ।
भरी सोभा मद भरी अंखियांन मैं । -देव उदा० निज प्रायु सिंह-सपेट ते सु बचाइ घर २. सदन सदन के फिरन की सद न छुटै,
को ल्यावही ।
-पद्माकर हरिराय रुचे जितै बिहरत फिरौ, कत बिह- सफजंगी-वि० [म. सफ+जंग] पंक्तिबद्ध लड़ने रत उरु आय ।
-बिहारी वाली (सेना)। सदागति-संज्ञा, पु० [सं०] पवन, हवा ।
उदा० मान-मंद-भंगी सफजंगी सैन संगी लिये, रंगी उदा० चंडकर कलित, बलित बर सदागति,
रितु पावस फिरंगी स्वांग लायो है। कंदमूल फलफूल दलनि को नासु है।
-पद्माकर -केशव सफर-संज्ञा, स्त्री० [सं० शफरी] बड़ी मछली, सदी-वि० [सं० सद्यः] १. ताजा टटका २. - सौरी मछली ।
तुरन्त शीघ्र ३. इसी समय, प्राज ही [अव्य]। उदा० परे मुरझाइ ग्राह-सफर फरफराइ, सुर कहैं उदा० होत प्रभात ही बेनी प्रवीन जू, आये महा
हाइ को बचावै नद-नाइक। -सेनापति उर माल सदी है।
-बेनी प्रवीन सबज-वि० [फा० सब्ज] हरे रंग वाली, हरी । सद्धना-क्रि० स० [सं० साधन 1 साधना, उदा० रंग रस भीनी झीनी कंचकी सबज छोरि किसी कार्य की सिद्धि करना, संधान करना ।
निकसि लसी हैं अनी जुगल उरोज की। उदा० हुप अति उदारता हृदय मद्धि । जग सुखित
-पद्माकर करौ सब साँच सद्धि ।
-सोमनाथ सबल-वि० [सं०] १, सौन्दर्य युक्त, सुन्दरता सद्धर-वि० [हिं० स+प्रद्धर] १. साधार, सहित २. चित्र-विचित्र (सं० शबल) शक्तिशाली २. उपयुक्त, ठीक, असली ।
उदा० १. कुंतल ललित नील भ्रकूटी धनुष नैन उदा० बिजली करै कलेवा दवनी सों राखै दवा
कुमुद कटाक्ष बाण सबल सदाई है। राह को खवावै मेवा सो सद्धर भाट है।
-केशव -गंग
२. बहुत भाव मिलि के जहाँ, प्रगट करै सघाना-क्रि० स० [देश॰] सिखाना।
इकरंग । उदा० धाये फिरो ब्रज में, बधाए नित नंद ज के,
सबल भाव तासों कहैं जिनकी बुद्धि गोपिन सधाये नचो गोपन की भीर में ।
उतंग ॥
-दास -देव
| सबील-संज्ञा, स्त्री० [अ० ] उपाय, प्रयत्न, सधोनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० संधिनी ?] १. कामना तरकीब। पूर्ति का गुण।
उदा० बचे न बड़ी सबीलहूँ चील्ह घोंसवा सि । उदा० सुन्दरता अति मैन दियो अरु दीन्ही मनो
-बिहारी सुरधेनु सधीनी ।
सबीह-संज्ञा, स्त्री० [ फा० शवोह ] चित्र, सनाका-संज्ञा, पु० [?] संगीत आदि का समां, __ तस्वीर। शब्द की तुमुल ध्वनि मुहा०, सनाका बंधना- उदा० हित गाढ़ी पहो इत ठाढ़ी कहा लिख काढ़ी समांबं घना [संगीत प्रादि का] ।
सबीह सी सोहती हो। -चन्द्रशेखर उदा० कहै पदमाकर त्यों बांसुरी की धुनि मिलि सबूर-संज्ञा, पु० [फा० सबू] शराब का घड़ा, रहयो धि सरस सनाको एक ताल को। शराब।
-पद्माकर | उदा० 'ग्वाल कवि' अंबर-अतर में अगर में न सनाह-संज्ञा, पु० [स० सन्नाह] कवच, बखतर।
उमदा सबूर हू मैं, है न दीपमाला मैं । उदा० बाँधे सनाह तुरंगन पै चढ़े वेष भयानक
-ग्वाल
-तोष
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