Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 232
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साना सारस उदा० भोरही ते उठि साँझ लो साधि करे गृह, सारंग-संज्ञा, पु० [सं०] १. वीणा २. घोड़ा काज सबै मन भाये । ३. चंदन, ४. पुष्प ५. दीपक। साना-संज्ञा, पु० [सं० सानु] चोटी, शिखर उदा० गाउ पीठ पर लेहु अंगराग अरु हार करु । उदा० लुके भूड़ माना गई आसमाना बड़े बिंष्य गृह प्रकास करि देहु, कान्ह कहयो सारंग साना भए धूरि धाना। -केशव नहीं। -काशिराज सामर--संज्ञा, पु० [सं० सम्बल ] राह खर्च, सार-संज्ञा, पु० [?] १. एक प्रकार का कलेवा । रेशमी वस्त्र २. तलवार खङ्ग ३. लकड़ी उदा० ताको तू लै जाय नियारे सामर दूध महेरो । ___ का ही पक्की लकड़ी। -बकसीहंसराज उदा०१. सार की सारी सो भारी लगै धरिबे सामा-संज्ञा, पु० [सं० श्यामा] १. श्यामा कह सीस बघम्वर पैया । -- रसखान नाम का पक्षी जो बहुत मधुर वाणी बोलता है बगरे बार झीने सार मैं झलकति अधर नई २. सामान । अरुनई सरसानि । -घनानन्द उदा० सामां सेन, सयान की सबै साहि के साथ । १. सादे मोती कंठ सोहैं पंचरंग अंग चारु. बाहुबली जय साहिजू, फते तिहार हाथ । सुरग तरौटा सोहै सारी सार सेत की ।। --बिहारी -आलम सामा-संज्ञा, स्त्री [सं० सामर्थ्य] १. सामर्थ्य, २. देव गुमान गयंद चढ़यो जग सौं अहं२. सामान ३.व्यवस्था । कार को सार ले जूझयो । -देव उदा० १. हम तो हैं बामा प्रौन जोग की है ३. सुरतरु सार की सॅवारी है बिर चि सामा ऊधौ । उन्हें जोग जोग है जु कांख पचि कंचन रचित चिन्तामणि की जराइ लीनी कुबरी। -सूरतिमिश्र की। -सेनापति २. छांडि न पायो मै एकहवार की मौन में सारतार-संज्ञा, पु० [सं०] श्रेष्ठ मोती। भोजन की कछु सामा । -नरोत्तमदास उदा० सेनापति अतर, गुलाब, अरगजा साजि, ३. धोती फटी सी लटी दुपटी अरु पाय सार तार हरि मोल ले लै धारियत हैं। उपाहन की नहिं सामा। -नरोत्तमदास --सेनापति चिन्तामनि कामधेनु औरन के दैन काजै । सारदसिरी-संज्ञा, स्त्री० [?] बसौंधी दूध की सामा करिबै की आये धामा दसरथ के । बनी वस्तु । -सूरतिमिर उदा० खारिक खरी को मधुह की माधुरी कों सामहे-अव्य सिं० सन्मुख] सामने, प्रत्यक्ष । सुम सारदसिरी को मीसरी को लूटिलाई उदा पीछे-पीछे डोलत हैं सामुहें ह्र बोलत सी। -पद्माकर -देव सारना-क्रि० स० [हिं० सरना] १. सुन्दर सायक-संज्ञा, पु० [सं०] १. खड्ग तलवार बनाना, सुशोभित करना २. समाप्त करना २. बाण । ३. बताना, याद दिलाना सिं० स्मरण] उदा० सायक एक सहायकर जीवनपति पर्यन्त उदा० . सारद सिंदूर सिर सौरम सराहैं सब तुम नृपाल । पालत क्षमा जीति दुधन सेन साजि संकुल प्रभा सी सारियत है। बर्वत। -कुमारमणि --गंग सायबान-संज्ञा, पु० [फा० साय:बान] मकान के २. केस पर सेस, दुग चलन पर खजनी आगे की छप्पर या छाजन जो छाया के निमित्त भौंह पर धनुष धरि सुरति सारौं ।-गंग बनाई जाती है। ३. प्रति लंगर अति निठर ढीट यह हसि उदा० कढ़ि गयो भान, अब मांगती हो सायबान हसि बातन टारै । कहत बनाय पाँच की मैन-मद पोखी तेरी नोखी रीति जानिये । सातक अपनो नांव न सारै। -दूलह -बकसीह सराज' दहें और चक्र चलावै सखी चौंरदार" । सारस-संज्ञा, पु [सं०] १. कमल २. एक बड़ा सायेबान संग सो झुकावै हीं जुलावहीं ।। पक्षी ३. चन्द्रमा ४. वि० [सं० स-+-पालस्य] -नागरी दास आलस्य बलित । For Private and Personal Use Only

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