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साना
सारस
उदा० भोरही ते उठि साँझ लो साधि करे गृह, सारंग-संज्ञा, पु० [सं०] १. वीणा २. घोड़ा काज सबै मन भाये ।
३. चंदन, ४. पुष्प ५. दीपक। साना-संज्ञा, पु० [सं० सानु] चोटी, शिखर उदा० गाउ पीठ पर लेहु अंगराग अरु हार करु । उदा० लुके भूड़ माना गई आसमाना बड़े बिंष्य
गृह प्रकास करि देहु, कान्ह कहयो सारंग साना भए धूरि धाना।
-केशव नहीं।
-काशिराज सामर--संज्ञा, पु० [सं० सम्बल ] राह खर्च, सार-संज्ञा, पु० [?] १. एक प्रकार का कलेवा ।
रेशमी वस्त्र २. तलवार खङ्ग ३. लकड़ी उदा० ताको तू लै जाय नियारे सामर दूध महेरो । ___ का ही पक्की लकड़ी।
-बकसीहंसराज उदा०१. सार की सारी सो भारी लगै धरिबे सामा-संज्ञा, पु० [सं० श्यामा] १. श्यामा
कह सीस बघम्वर पैया ।
-- रसखान नाम का पक्षी जो बहुत मधुर वाणी बोलता है
बगरे बार झीने सार मैं झलकति अधर नई २. सामान ।
अरुनई सरसानि ।
-घनानन्द उदा० सामां सेन, सयान की सबै साहि के साथ ।
१. सादे मोती कंठ सोहैं पंचरंग अंग चारु. बाहुबली जय साहिजू, फते तिहार हाथ ।
सुरग तरौटा सोहै सारी सार सेत की ।। --बिहारी
-आलम सामा-संज्ञा, स्त्री [सं० सामर्थ्य] १. सामर्थ्य,
२. देव गुमान गयंद चढ़यो जग सौं अहं२. सामान ३.व्यवस्था ।
कार को सार ले जूझयो ।
-देव उदा० १. हम तो हैं बामा प्रौन जोग की है
३. सुरतरु सार की सॅवारी है बिर चि सामा ऊधौ । उन्हें जोग जोग है जु कांख
पचि कंचन रचित चिन्तामणि की जराइ लीनी कुबरी।
-सूरतिमिश्र की।
-सेनापति २. छांडि न पायो मै एकहवार की मौन में
सारतार-संज्ञा, पु० [सं०] श्रेष्ठ मोती। भोजन की कछु सामा । -नरोत्तमदास
उदा० सेनापति अतर, गुलाब, अरगजा साजि, ३. धोती फटी सी लटी दुपटी अरु पाय
सार तार हरि मोल ले लै धारियत हैं। उपाहन की नहिं सामा। -नरोत्तमदास
--सेनापति चिन्तामनि कामधेनु औरन के दैन काजै ।
सारदसिरी-संज्ञा, स्त्री० [?] बसौंधी दूध की सामा करिबै की आये धामा दसरथ के । बनी वस्तु ।
-सूरतिमिर
उदा० खारिक खरी को मधुह की माधुरी कों सामहे-अव्य सिं० सन्मुख] सामने, प्रत्यक्ष ।
सुम सारदसिरी को मीसरी को लूटिलाई उदा पीछे-पीछे डोलत हैं सामुहें ह्र बोलत
सी।
-पद्माकर -देव
सारना-क्रि० स० [हिं० सरना] १. सुन्दर सायक-संज्ञा, पु० [सं०] १. खड्ग तलवार बनाना, सुशोभित करना २. समाप्त करना २. बाण ।
३. बताना, याद दिलाना सिं० स्मरण] उदा० सायक एक सहायकर जीवनपति पर्यन्त
उदा० . सारद सिंदूर सिर सौरम सराहैं सब तुम नृपाल । पालत क्षमा जीति दुधन
सेन साजि संकुल प्रभा सी सारियत है। बर्वत। -कुमारमणि
--गंग सायबान-संज्ञा, पु० [फा० साय:बान] मकान के
२. केस पर सेस, दुग चलन पर खजनी आगे की छप्पर या छाजन जो छाया के निमित्त
भौंह पर धनुष धरि सुरति सारौं ।-गंग बनाई जाती है।
३. प्रति लंगर अति निठर ढीट यह हसि उदा० कढ़ि गयो भान, अब मांगती हो सायबान
हसि बातन टारै । कहत बनाय पाँच की मैन-मद पोखी तेरी नोखी रीति जानिये ।
सातक अपनो नांव न सारै। -दूलह
-बकसीह सराज' दहें और चक्र चलावै सखी चौंरदार" । सारस-संज्ञा, पु [सं०] १. कमल २. एक बड़ा सायेबान संग सो झुकावै हीं जुलावहीं ।। पक्षी ३. चन्द्रमा ४. वि० [सं० स-+-पालस्य]
-नागरी दास आलस्य बलित ।
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