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जया वारसणि सारण सारस गिराया, इस
पोनी स्याम लीला माह कापिला कर
सारिख ( २१६ )
सिदूख उदा. सारसनि सारस ने, सारस निरास, हस । चीनी स्याम लीला माह काविली जनाई सारस तुसार गिरि सार गुनियत हैं।
-बेनीप्रवीन -देव सुखवायक-संज्ञा, पु० [सं०] १. देवराज, इन्द्र ४. सारस सारस नैनि सुनि, चन्द्र चन्द्रमुखि २. सुख देने वाले । देखि ।
-केशव उदा. गणपति सुखदायक पशुपति लायक, सूर सारिख-वि० [सं० सदृश] सदृश, समान, तुल्य
सहायक कौन गनै ।
-केशव बराबर।
सुगथ-वि० [सं० सुग्रथ] सुन्दर तरह से गुथे उदा० सोई लगी शशि के मुख कारिख पौ तेहि गये, सुन्दर ढंग से जोड़ मिलाये गये।
सारिख कौन बतायो। -गुमान मिश्र उदा० इहिं द्वहीं मोती सुगथ तं, नथ, गरबि सारी-संज्ञा, स्त्री [सं० सारि] गोट, पासा।
निसाक।
-बिहारी उदा० सेजमैंन सारी सीहें सारी बिसारी सी है।। सुचंद-वि० [?] श्रेष्ठ, उत्तम ।
- पालम
उदा० गुन-ज्ञान-मान सुचंद है। नित करत खलसालमंजी-संज्ञा, स्त्री० [सं० शालम जी] शाल
मुख मंद है।
-पदमाकर मंजिका, मूर्ति, गुड़िया।
सिखावान-संज्ञा, पु० [सं. शिखावान] अग्नि, उदा० तरुन तमाल तरु, म जुल प्रबाल मी जि- माग । मंजरी रसाल बाल मंजी सालभजी सी
उदा० सिखावान-कर-कलित जलज अक्षत सिर -देव सोहै।
-केशव सासल्य-वि० [सं० स+शल्य] पीड़ा सहित, सिखिचंद-संज्ञा, पु० [सं० शिखि चन्द्र] मयूर शल्य युक्त ।
चंद्रिका, मोर चंद्रिका । उदा० भक्ति भाव भक्तनि विषे, लघुनि प्रीति उदा० कवि 'मालम' भाल के उरध यों उपमा वात्सल्य । कार्पण्यं निजजन कृपण, सांति
सिखि चन्द्र की पंति धरी । -आलम सोक सासल्य ।
-देव
सिखी-संज्ञा, पु० [सं० शिखिन्] अग्नि, पावक सासौ-संज्ञा, पु० [हिं० सांसत] संकट, घोर
२. मोर ३. कामदेव । कष्ट ।
उदा० सिखी की जारो जिय सिंह को विदारयो उदा० अरु तुम कमलजोनि त छूटी। श्राप ताप
जिये बरछी को मारयो जिय वाको भेद की सासौ तूटौ ।
-जसवंतसिंह
पाइय। साहि-संज्ञा, पु०फा० शाहीं] १. एक प्रकार सिख्या--संज्ञा, स्त्री० [सं० शिष्या] शिष्या, का बाज २. शाहजहाँ बादशाह ।
चेली । उदा० सामा, सेन, सयान की सबै साहि के साथ। उदा० चेदिपति खेदिपति राख्यो ब्याह वेदिक,
-बिहारी । हौं अन्तर निवेदि, देव दासिनु की सिख्या सिकलना-क्रि० स० [हिं॰ सकेलना] एकत्रित
ही।
-देव होना, इकट्टा होना।
सिंगरफ-संज्ञा, पु० [ १. ईगुर।] उदा० अकबर साहि जू के महाबली दानसाहि, उदा० केसरि सुरंग सिंगरफ सों रँगीले डील, रावरे सिकार ए तो दल सिकलत है ।
डडहे सील के जे पानद सुहेले में । -गंग
-सोमनाथ सिखंड-संज्ञा, पु० [सं० शिखंड] १. मोरपंख, सिजित-संज्ञा, स्त्री० [स० ] करधनी, कमर मयूर की पूंछ २. चोटी।
में पहनने का एक आभूषण २. प्राभूषणों की उदा० १. सौई घनानंद सुजान रूप को पपीहा, ध्वनि ।
सोभा सींव जाके सीस मंडित सिखंड | उदा० भ्र व मटकावति नैन नचावति । सिंजित है।
-घनानन्द सिसिकिन सोर मचावति ॥
-दास. सुखचीनी-संज्ञा, पु० [सं० चीनांशुक, चीनी + सिंदूख-संज्ञा, स्त्री० [प्र. संदूक] अंबारी, हाथी सुखा एक प्रकार का रेशमी वस्त्र जो चीन देश | . की पीठ पर रखने का हौदा जिसके ऊपर एक से पाता था।
छज्जेदार मंडप होता। उदा० चषमति सुमुखी जरद कासनी है सुख, । उदा० सोने की सिंदूख साजि सोने की जलाजले
बोधा
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