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साँकर
उदा० जम्बुवती पति सों सतभामिनि, साँक ह्र नाक मरोरी ।
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( कामिनि -देव संकट, कष्ट
साँकरे -- संज्ञा, पु० [सं० संकट ] १. २. जंजीर ।
--दास
शंका २.
उदा० यह कैसो निसाकर मोहि बिना पिय साँकरे के जिय लेन लग्यो । सांका-संज्ञा स्त्री० [सं० शंका ] संत्रस्त [वि० ], मयमीत शंकित । उदा० का करें नंदराम त्यों घूंघट सांका करे लखि नेक न जीको । - नंदराम साँझी -- संज्ञा, स्त्री० [?] देवालयों में जमीन पर सावन मास में की गई फूल-पत्तों यादि की उदा० पुजावति साँझी कीरति माय, कुंवरि राधा को लाड़ लड़ाय । --घनानंद साँट - - संज्ञा, स्त्री० [ ? ] सौदा बेचने की चीत ।
सजावट ।
उदा० लोभ लगे हरि रूप के करी सांट जुरि जाइ । -- बिहारी रूप की साटि के तौलति घाटि वद अनवाद दर्द फल जूठे --देव
सांथर – संज्ञा, स्त्री० [?] बस्ती | उदा० देस नगर साँथर गढ़ ग्राम । सेख विना मेरे किहि काम | - केशव
बात
साँधना- क्रि० स० [सं० संधान ] खोज करना,
संधान करना । उदा० साँझ समै न रहे रफ मानु की तासमै या को सुखाइबो सांधे । - बेनी प्रवीन 'साँवरो इन्दु-संज्ञा, पु० [सं० श्याम = कृष्ण + इंदु = चन्द्र ] कृष्णछन्द्र उदा० 'दास' कियो छंदारनव, इंदु | साउथ - - संज्ञा, पु० [ सं० सामंत ] वीर, योद्धा, साम ंत । उदा० ररणसूर मयूर घनै चिहरे । घुरवा झुक साउथ से बिहरे ।
सुमिरि साँवरो
-दास
- बोधा
साकरना -- क्रि० स० [सं० स्वीकरण]
साक - वि० [सं० शंका] शंकित, भयभीत । उदा० जम्बुवती पति सौं सतिभामिनि, कामिनि साक नाक मरोरी । --देव स्वीकार नाकरें नै --देव स + श्राकृत = प्राशय ]
करना, मंजूर करना ।
उदा० या मुख साकरे लाज की साकरे नग सकिर मौंहे । साकूत - वि० [सं०
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श्राशय युक्त, तात्पयं सहित । उदा० सूक्ष्म परासे जानि इंगित साकूत करें, कोस मैं बलायो कर कमल को कोस है । - दूलह
[सं- शाका + हि० न]
साखन-संज्ञा, पु० प्रसिद्धि, धाक, रोष । उदा० कीजत फिराद सुनि लीजिये हमारी गंगा साखन के साथी दुख दिग्गज डिगाए तूं । - पद्माकर
सातकुंभ --- संज्ञा, पु० सोना ।
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साखाबिलासी — संज्ञा, पु० [सं० शाखाविलासी ] शाखामृग, बन्दर, मर्कट ।
उदा० उठ्यो सो गदा ले जदा लंकबासी । गये भागिकै सर्व साखा बिलासी । - केशव
साग -- क्रि० वि० [सं० संग] संग, साथ । उदा० किध राम लछिमन द्वे साग । मन क्रम बचन किधौं अनुराग । साचली - वि० [हिं० सच्ची, सच + ली] सच्ची
-केशव
सत्य ।
उदा० काली नाग नाथ्यो संखचूर चूर कियो अघ अजगर मार्यो पूतना की बात साचली । --देव [सं० शातकुंभ ] स्वर्णं, मानहुँ रंगे कुसुंभ । सातकुंभ से कुंभ ॥ मतिराम समूह, संघ । जिहिं पतितनु के - बिहारी विस्तर, बिछौना
उदा० राजत अरुन सरोज हैं, जोबन मद गज कुंभ के
साथ -- संज्ञा, पु [सं० सार्थं ] उदा० दीजं चित सोई, तरे
साथ ।
साधि
साथर - संज्ञा, पु० [देश० ] २. कुश की बनी चटाई । उदा० साथर ही दृग-पाथ रही तन हाथ रही है । साद - वि० [अ०] १. पुनीत मुबारक । उदा० १. बाद कियो वहि चंदहि मैन मनोहक चंदहि साद कियो है । -तोष साधनों क्रि० स० [सं० साधन] शोधना, शुद्ध करना, सुगन्ध आदि से शरीर को शुद्ध करना । उदा० श्राभो चलौ देखिये जू लेखियं जनम धन्य, केसर गुलाल सों सरीर साधियतु है । -ठाकुर सोत्साह
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साधि - क्रि० वि० [हिं० साध ] सोल्लास, इच्छापूर्वक, प्रमपूर्व के ।
घुरि पाथर ही - देव श्रेष्ठ २. शुभ