Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan
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समदैना
समदना- - क्रि० स० [ बुं० ] दायज, किसी वस्तु को देना ।
उदा० तोहि सखी समदं संग वाके बात सबै बनि आवै ।
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भु क्यों यह -केशव दास पमर - संज्ञा, पु० [सं० स्मर] कामदेव, मनोज २. युद्ध, लड़ाई |
उदा० १. धँस्यो समर हियगढ़ मनहु ड्योढ़ी लसत निसान । - बिहारी श्री स्याम के समर जैसे, कमल पत्र थाना के । — गंग समोरिधि - संज्ञा, स्त्री० [सं० समृद्ध ] सम्पन्नता, अमीरी ।
दसरथ के राम, ईस के गनेस श्री
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( २१३ या भेंट में
उदा० मध्या रूठ जोवना प्रगट काम ढीठ बैनी सुरत विचित्रा लाज काम समरिधि है ।
-देव
घूँघट खुलत मुख जोति ङ्ख' गयो छपाव सब बैगुन
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समल- वि० [सं०] मलीन, गंदा, मैला । उदा० पाइन में फलके परि परि झलके दौरत थल के बिथित भई । श्रादरस अमल सो दुगन कमल सो घरै समल सी गिरिन छई । -पद्माकर समलनि-बि० [सं० समल] मैला, गंदा, मलीन उदा० सहज सुगंध सौं मध मधुकर कहो को गनै सुगंध और सोधे समलनि को । -देव समादान - संज्ञा, पु० [ भ० फ० शमश्रदान ] जिसमें मोमबत्ती रख कर जलाते हैं । उदा० कारचोबी कीमत के परदा बनाती चारु, चमक चहूँधा समादान जोत जाला में ।
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-ग्वाल
समिधि -- संज्ञा, पु० [सं० समिघ] मग्नि, आग | उदा० लागत किरणि जाकी करत बिकल अंगदेखे ताप याखिन में बसी है समिधि सों । - रघुनाथ को पसार होत समिधि को ।
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समोति - संज्ञा स्त्री० [सं० समिति] समूह, ३. समेत, सहित ।
- रघुनाथ
समीड़ना-क्रि० स० [सं० स
हि मोड़ना ] अच्छी तरह से मीजना, मलना, मर्दन करना । उदा० अंब-कुल बकुल समीड़ि पीड़ि पाड़रनि मल्लिकानि मोड़ि घन घूमत फिरत हैं ।
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- देब मेल २.
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समोवन
उदा० १. इन्द्रजीत सों हती समीति । कछू दिनन तें ऐसी रीति । -केशव
अब भोर भये उठि आये दुरे दुरें बातनि ही सों समीति करी । -सोमनाथ
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२. बदलि परी है प्रीति-रीति परतोतिनीति, निपट अचंभे की समीति लेखियत है । -घनानन्द ३. अंग समीत अनंग की जोति में, प्रीति पतंग ह्र दौरि परी जू । -देव बँधा हुआ,
समीधी- वि० [सं० संविद्ध ? ] फँसा हुआ, सम्मिलित मिला हुआ । उदा० बीधी बात बातन समीधी गात गातन उबीधी परजंक में निसंक श्रंक हितई ।
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- देव समोलना- क्रि० अ० [सं० सम्मिलन ] सम्मिलित होना, शामिल होना, माग लेना । उदा० नित जेठी उमेठी सी भोहैं करें, दुख देन को दासी समीन है । बेनी प्रवीन समुच्च — संज्ञा, पु० [सं० समुच्चय ] समूह, राशि | उदा० लाल कर पल्लव बनक भुज बल्लरीन, कनक समुच्च उच्च कुच गिरि संगिनी ।
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- देव समुना -संज्ञा, पु० [सं० शयन] हिंसा, हत्या या मारने की वृत्ति ।
उदा० तेज मरी मंजुल मजेज भरी रीझ भरी खीझ मरी दूतन की दाहै दौरि समुना ।
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-ग्वाल
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समूढ़ – संज्ञा, पु० [सं०] समूह, राशि । उदा० प्रौढ़ि रूढ़ को समूढ़ गढ़ गेह में गयो । शुक्र मंत्र शोधि-शोधि होम को जहीं भयो । - केशव
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समूघो - वि० [देश० ] सब, सम्पूर्णं । उदा० रुघो रुके कौन को समूधो करि काज बीर सूघो चलो पौन को सपूत रामदल को ।
-समाधान
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समूर- संज्ञा, पु० [सं० समूल] १. आदिकारण, प्रभाव, २ हष, समुल्लास, ३. शंबर नामक हिरन । उदा० १. तेरो कल बोल कल भाषिनि ज्यों स्वाति बुंद, जहाँ जाइ परे, तहाँ तँसोई समूर है । समोवन-संज्ञा, पु० [हिं० समाना ] मग्न, तन्मय उदा० गाय दुहावन हो गई, लखे खरिक हरि सांझ । सखी समोवन ह्न गई आँखें

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