Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 227
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra समदैना समदना- - क्रि० स० [ बुं० ] दायज, किसी वस्तु को देना । उदा० तोहि सखी समदं संग वाके बात सबै बनि आवै । --- भु क्यों यह -केशव दास पमर - संज्ञा, पु० [सं० स्मर] कामदेव, मनोज २. युद्ध, लड़ाई | उदा० १. धँस्यो समर हियगढ़ मनहु ड्योढ़ी लसत निसान । - बिहारी श्री स्याम के समर जैसे, कमल पत्र थाना के । — गंग समोरिधि - संज्ञा, स्त्री० [सं० समृद्ध ] सम्पन्नता, अमीरी । दसरथ के राम, ईस के गनेस श्री - ( २१३ या भेंट में उदा० मध्या रूठ जोवना प्रगट काम ढीठ बैनी सुरत विचित्रा लाज काम समरिधि है । -देव घूँघट खुलत मुख जोति ङ्ख' गयो छपाव सब बैगुन www.kobatirth.org समल- वि० [सं०] मलीन, गंदा, मैला । उदा० पाइन में फलके परि परि झलके दौरत थल के बिथित भई । श्रादरस अमल सो दुगन कमल सो घरै समल सी गिरिन छई । -पद्माकर समलनि-बि० [सं० समल] मैला, गंदा, मलीन उदा० सहज सुगंध सौं मध मधुकर कहो को गनै सुगंध और सोधे समलनि को । -देव समादान - संज्ञा, पु० [ भ० फ० शमश्रदान ] जिसमें मोमबत्ती रख कर जलाते हैं । उदा० कारचोबी कीमत के परदा बनाती चारु, चमक चहूँधा समादान जोत जाला में । - -- -ग्वाल समिधि -- संज्ञा, पु० [सं० समिघ] मग्नि, आग | उदा० लागत किरणि जाकी करत बिकल अंगदेखे ताप याखिन में बसी है समिधि सों । - रघुनाथ को पसार होत समिधि को । — - समोति - संज्ञा स्त्री० [सं० समिति] समूह, ३. समेत, सहित । - रघुनाथ समीड़ना-क्रि० स० [सं० स हि मोड़ना ] अच्छी तरह से मीजना, मलना, मर्दन करना । उदा० अंब-कुल बकुल समीड़ि पीड़ि पाड़रनि मल्लिकानि मोड़ि घन घूमत फिरत हैं । - - देब मेल २. > समोवन उदा० १. इन्द्रजीत सों हती समीति । कछू दिनन तें ऐसी रीति । -केशव अब भोर भये उठि आये दुरे दुरें बातनि ही सों समीति करी । -सोमनाथ ―― २. बदलि परी है प्रीति-रीति परतोतिनीति, निपट अचंभे की समीति लेखियत है । -घनानन्द ३. अंग समीत अनंग की जोति में, प्रीति पतंग ह्र दौरि परी जू । -देव बँधा हुआ, समीधी- वि० [सं० संविद्ध ? ] फँसा हुआ, सम्मिलित मिला हुआ । उदा० बीधी बात बातन समीधी गात गातन उबीधी परजंक में निसंक श्रंक हितई । ― Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - देव समोलना- क्रि० अ० [सं० सम्मिलन ] सम्मिलित होना, शामिल होना, माग लेना । उदा० नित जेठी उमेठी सी भोहैं करें, दुख देन को दासी समीन है । बेनी प्रवीन समुच्च — संज्ञा, पु० [सं० समुच्चय ] समूह, राशि | उदा० लाल कर पल्लव बनक भुज बल्लरीन, कनक समुच्च उच्च कुच गिरि संगिनी । - - देव समुना -संज्ञा, पु० [सं० शयन] हिंसा, हत्या या मारने की वृत्ति । उदा० तेज मरी मंजुल मजेज भरी रीझ भरी खीझ मरी दूतन की दाहै दौरि समुना । - -ग्वाल - समूढ़ – संज्ञा, पु० [सं०] समूह, राशि । उदा० प्रौढ़ि रूढ़ को समूढ़ गढ़ गेह में गयो । शुक्र मंत्र शोधि-शोधि होम को जहीं भयो । - केशव For Private and Personal Use Only समूघो - वि० [देश० ] सब, सम्पूर्णं । उदा० रुघो रुके कौन को समूधो करि काज बीर सूघो चलो पौन को सपूत रामदल को । -समाधान -- -- समूर- संज्ञा, पु० [सं० समूल] १. आदिकारण, प्रभाव, २ हष, समुल्लास, ३. शंबर नामक हिरन । उदा० १. तेरो कल बोल कल भाषिनि ज्यों स्वाति बुंद, जहाँ जाइ परे, तहाँ तँसोई समूर है । समोवन-संज्ञा, पु० [हिं० समाना ] मग्न, तन्मय उदा० गाय दुहावन हो गई, लखे खरिक हरि सांझ । सखी समोवन ह्न गई आँखें

Loading...

Page Navigation
1 ... 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256