Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan
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लूघर
लोय
लूघर-संज्ञा, पु० [हिं० लूहर] लुपाठ, जलता २. लासा, जिससे चिड़िया फंसायी जाती है। अंगारा २. धोती, ३. कपड़ा [हिं० लुगरा]
३. नेत्र, [सं० लोचन] ४. लवापती । उदा० परस्यो भात न आगे खाहीं । लूघर लूघर उदा० १. लहलहाति तन तरुनाई लचि लग लौं __ सब चिचयाहीं ।
-बोधा
लफ जाइ लगै लाँक लोइन भरी लोइनु लूटि संज्ञा, स्त्री॰ [हिं० लूट] लूट से प्राप्त
लेति लगाइ ।
-बिहारी माल या घन ।
लोच-संज्ञा, स्त्री॰ [हिं० लचक] अभिलाषा उदा० देख्यो दास देव दुरलभ गति दै कै महा, ! उदा० चरन कमल ही की लोचनि में लोच धरी पापिन को पापन की लूटि ऐसी पावती।
रोचन ह्व राज्यो सोच मिटो धाम धन -दास को ।
-मालम लत-संज्ञा, स्त्री० [सं० लूता] मकड़ी, लूता। लोचना क्रि० स० [हिं. लोचन] अभिलाषा उदा० लगे लूत के जाल ये लखो लसत इहि करना, रुचि उत्पन्न करना।
मौन । जानि कुहू रजनी मनो कियो २. कामना करना, ललचना, शोभित होना नखतगन गौन ।
-मतिराम ३. तर्क वितर्क करना। लूमना-क्रि० अ० [सं० लंबन] लटकना। . उदा० लोचत फिरत रंग रोचत रुचा परुच सोच उदा० घूम आये झूम पाये लूम पाये भूमि पाये
नहीं होत हैं विधाता बिसरे को यो। चूमि चूमि माये धन चंचलै चमाके सों।
-ठाकुर -वाल । २. लोचै वही मूरति परबरानि आवरे। लूहर--संज्ञा, पु० [सं० लुक, हिं० लुपाठ] ३. मौन विलोकिबे को मन लोचत सोचत जलता अंगारा, लुमाठ, लूक ।
ही सब गाँव मॅझायौ। नरोतम दास उदा० ऊँचे ते गर्व गिरावत, क्रोधहु जीवहि लूहर लोचनधवा-संज्ञा, पु०, [सं० चचुश्रवा] सर्प, लावत मारे।
-केशव । साप । सावरेह मानसनि गोरे नीके लागत कि, उदा० अंग मैं शिवा हैं, मात लोचन श्रवा हैं,पन गोरे ही के लोइन में लूहरु लगत है।
और निरबाहैं, का हैं कही तकि तूल रे । -गंग
-सूरति मिश्र लेखी-संज्ञा, स्त्री० [सं० लेखा-देवता स्त्री० । लोट-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] त्रिबली, पेटी । लेखी] देवी, देवाङ्गना ।
उदा० कर उठाय चूंघट करत उसरत पट उदा० लेखी मैं अलेखी मैं नहीं है छवि ऐसी औ,
गुझरोट । सुख मोट लूटी ललन लखि असमसरी समसरी दीबे को परे लिये ।
ललना की लोट ।
--बिहारी -दास लोटन-संज्ञा, पु० [हिं० लोटना] एक प्रकार लेव-संज्ञा, पु० [सं० लेप्या लेप ।
। का कबूतर । उदा० सोरह सहसरानी आठौ पटरानी संग महल उदा०-लोटन लोटत गुलीबंद तीरा रेखता की बन्यो है जो न घनसार लेव को।
। . नख तंग घाघरा न सुतरी बनाई है। -रघुनाथ ।
- बेनी प्रवीन लेस-संज्ञा, पु० [सं० लेश] १. चिह्न, निशान परे वे अचेत हरे वै सकल चिरु चेत २. अणु, ३. सम्बन्ध, ४. थोड़ा [वि.] ।
पलक-भुजंगी डसे लोटन-लोटाए री। उदा० निरखि नबोढ़ानारि तन छटत लरिकई
-दास लेस ।
- बिहारी लोढ़े-संज्ञा, पु० [सं० लोष्ठ] पाषाण का लै-अव्य० [हिं० लगना] तक, पर्यत ।।
टुकड़ा, पत्थर कण । उदा० फूले अनारनि चंपक डारनि लै कचनारनि उदा० घूमि चहूँ दिसि भूमि रहे घन बूंदन ते नेच तची है।
-देव चिति डारत लोढ़े ।
-रघुनाथ लोइ-संज्ञा, पु० [हिं० लोग] लोग, जन । लोय-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लाव] १. शिखा, उदा० तासों मुग्धा नववधू, कहत सयाने लोइ। । लौ, लपट २. लोग।
-केशव | उदा०१. मोहन गोहन मैं ललचे, ललना लहकाति लोइन-संज्ञा, पु० [सं० लावण्य] १. लावण्य, ज्यों लोय दिया की। -नागरीदास
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