Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २०७ > लोयन लोयन - संज्ञा, पु० [सं० लावण्य] सुन्दरता, २. नेत्र [सं० लोचन, प्रा० लोयन ] उदा० लट में लटकि, कटि लोयन उलटि करि, त्रिबली पलटि कटि तटिन में कटि गयो । —देव २. लोयन लोयन सिंधुतन पार । पैरि न पावत - बिहारी लोरना — क्रि० अ० [सं० लोल] १. चंचल होना ललकना, ललचना २. लोटना, पैरों पर गिरना [हिं० लौटना ] | उदा० १. दास कटीले ह्र गात कँप बिहँसौही हँसौही लसै दृग लोरति । २. देव कर जोरि जोरि बंदत लोगनि को लोरि लोरि पायन -दास सुरन, गुरु परति है । वंच्छना - क्रि० सं० [हिं० वांछा ] वांछा करना, कामना करना । उदा० गौन अलच्छित गच्छती तच्छन वच्छती पच्छ, विपच्छ मृगच्छी । - कुमार मरिण वग्ग — संज्ञा, पु० [सं० वर्ग] वर्ग समूह | उदा० अरि वग्ग यों दुग्ग दरीन दुरे भ्रम-मीत से भीतर तें न कुमार मरिण वफा — संज्ञा, स्त्री० [अ० वफा] मुरौवत, सुशीलता संकोच । —पद्माकर उदा० जौ लग प्रान पुँजी में वफा बड़ी तो लौं नफा न मिलाप की पैहौ । वरटा - संज्ञा, पु० [सं०] हंस नामक पक्षी । उदा० हैं अबहीं चिकुला जनमे वरटा तनमें छिनु धारत धीरन । हीं प्रतिपालक हौं तिनको नहि आजु महार मिल्यो अरु नीरन । - गुमान मिश्र वसुमती संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी । उदा० ऐसी रूपवती वसुमती में न ओर जाकी बिरह बिथा में इतनी कुसल छेम है । - रघुनाथ वारी - संज्ञा, स्त्री० [हिं० बारी] खिड़की, झरोखा, गवाक्ष । उदा० वारियाँ महल की न हलकी मुदी ही जहाँ रासि परिमल की अँगोठियाँ अनल की । ग्वाल व वितंड - देव लौंज संज्ञा, पु० [अ० लौज ] बादाम, एक प्रसिद्ध मेवा । उदा० तेबन की लोज में, न हौज में हिमामहूके, मृगमद मौज में, न जाफरान जाला में । —ग्वाल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लौद - संज्ञा, स्त्री० [बुं०] छड़ी | उदा० लौद सी लंक लंबे कुचमार संभारत चूनरी चारु सुकैची । --पद्माकर लौंनी संज्ञा स्त्री [हिं० लवर] आग की लपट, ज्वाला । उदा० तृष्णाहू तिनूका जग जाल-जाल पूर्यो जहाँ, लगी लोभ लोंनी कौन भाँति सुख पायहैं । -- सूरति मिश्र ! वासरेश संज्ञा, पु० [ सं ] सूर्य, दिनेश । उदा० इन्द्र यम बरुरण कुबेर शेष वासरेश वारिये सुमेरु कैलास की चमक पुनि । —देव वासिलात -संज्ञा, पु० [अ०] कुल आय का जोड़, आमदनी का मीजान । उदा० राख्यौ है किसोर पन जोबन बहाल करि, मदन महीप वासिलात बुझि लेन को । - बेनी प्रवीन वासुकि संज्ञा, पु० [वासुकि] १. बासुकी नाग २. सुगंधित पुष्पहार उदा० वृषभवाहिनी अंग उर, वासुकि लसत प्रवीन शिव सँगे सौहै सर्वदा, शिवा कि राय प्रवीन । —केशव विखसीली वि० [सं० विष] विषाक्त, विषैली । उदा० भावत वै बनक बनीले बनबीथिन ते कीले मैन मंत्रन गुमान विखसीली को । - चन्द्रशेखर विचितवि० [सं० विचित्र ] विस्मित, चकित, उदासीन । उदा० चितै चिते जित तित, ह्न रही चकित चित, विचित विचारी, घरी चारि लौं विचारि के । —देव वितंड-संज्ञा, पु० [सं०] १. ताला २. हाथी । उदा : १. गंग कहै धनपति नृपति बिकल मति. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256