Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 219
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -केशव लिखाना ( २०५ ) लूकना उदा० लिखनी दल मंजुल कंज की मैन ले, चंचु | तैयार फसल काटना, २. नष्ट करना। सँवारत खंजन की । -आलम उदा० पालम बिहारी बिन मोहन अचेत भये, लिखाना-क्रि० सं० [सं० लिखन] पोताना, हाय दई हेत खेत ऐसे लुनियत है । रँगाना। -पालम उदा० दरि दरि चंदन कपूर चूर छरि छरि मरि लुप-वि० [सं० लुप्त] लुप्त, गायब । भरि हिम मही महल लिखाइयत । . .- देव उदा. बाचक अरु उपमेय लुप चपल चंचला लिगारना-क्रि० सं० [हिं० लिकारना- लीक देखु । -पद्माकर बाँधना] १. धब्बा, या कलंक लेना. २. मर्यादा लुपरी-संज्ञा, स्त्री० [ बुं. ] प्याज की पोटली बाँधना, लीक बांधना । जिसे गर्म करके चोट आदि में सेंकते हैं। उदा० देवजू कौन गनै परलोक में लोक में प्रापु । । उदा० बिरह अगिन में प्रीति प्याजु लै लुपरी अलोक लिगारिये । - देव लगन सेंकाये। -बकसी हंसराज लिटिना-क्रि० अ० [हिं० लेटना] लेटना, सोना, लुबै-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लू] लू, गर्म हवा, पौढ़ना । ग्रीष्म की तप्त हवा । उदा० राव भयो रंक ते न रंकता हिये की गई उदा० हे रघुनाथ मिले बिनु वाके लुबे सी लगै पौढ़ यो परजंक, जोई पंक मैं लिटि रहयो । मलयानिल देही। -रघुनाथ -देव लुर-संज्ञा, पु० [सं० लोलक] लोलक, लटकन लिलोहो- वि० [हिं० लीलना, सं० लोलुप] जो बालियों में पहना जाता है। अत्यन्त लोभी, लालची। उदा० चमकत चुनी बीच मुतियन के लटकत लुर उदा. बूझिबे की जक लागी है कान्हहि केसब दुर केरी। -बकसी हंसराज __ कै रुचि रूप लिलोही। लुरना-क्रि० प्र० [सं० लुलन] प्रवृत्त होना, लिसना-क्रि० सं० [स० लसन] मिलना, सटना, प्राकर्षित होना, लगे रहना। चिपकना । उदा० संग ही संग बसो उनके अंग अंग वे देव उदा० ता मधि माथे में हीरा गुह्यो सुगयो गड़ि तिहारे लुरीय। -देव केसन की छबि सों लिसि । -देव लुरी - संज्ञा, स्त्री० [देश॰] थोड़े दिन की ब्याई लील-संज्ञा, पु० [हिं० नील] कलंक, धब्बा । हुई गाय । उदा० कोऊ कहूँ लखि लेय जो याहि तो होय उदा० लाड़िली लीली कलोरी लुरी कहँ लाल लला मोहि लील को टीको। -ठाकुर लुके कहँ अंग लगाइकै। -केशव लीलहीं-संज्ञा, पु० [हिं० नील] नील, नीलकंठ । लुरैया - संज्ञा, पु० [बुं०] तुरन्त का पैदा हुआ उदा० इनको तौ हाँसी वाके अंग में प्रगिनि बछड़ा। बासो, लीलहीं जु सारो सुख-सिंधु बिसराये उदा० पुचकारत पोंछत पुनि आछे कांधे धरे री । -दास लुरैया। -बकसी हंसराज लुंबराई- संज्ञा, पु० [?] यौवन, जवानी । लुलाना-क्रि० सं० [हिं० ललाना- ललचाना] उदा० लांबी लट लंबराई को लौन मुखै बन्यो ललाना, ललचाना । पानिप नैननि पानी । -गंग उदा. जसो गुरु तैसो सिष्य, सिच्छा की अनिच्छा लुगी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लूगा] लंहगे का भई, इच्छा भई पूरन, पै भिच्छा को गोटा। लुलात है। -देव उदा० पीरे प्रचरान स्वेत लुगरा लहरि लेत लुगी लुहना-क्रि० अ० [सं० लुब्ध] लुभाना, मोहित लॅहगा की लाल रंगी रंग हेरा की। होना । -देव उदा० अरि कै वह आजु अकेले गई, लुठना-क्रि. अ० [सं० गुंठन] लोट जाना, ऐंठ खरि के हरि के गुन रूप लुही। -देव जाना। लूकना-क्रि० स० [हिं० लोकना, सं० प्रवलोकन] उदा० बैरी की नारि बिलख्खति गंग यों सूखि दिखाई पड़ना, लक्षित होना। गयो मुख, जीभ लुठानी। -गंग उदा० छिति अंधकार छायो सघन, दुग पसारि लुनना-क्रि० सं० [सं० लवन] १. खेत की । लूक न कर। --चन्द्रशेखर For Private and Personal Use Only

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