Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 217
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लवली । २०३ ) लाई उदा. चंपकमाल सी हेमलता सी कि होई जवाहिर | उदा० धनि वे धन है तिनके लहने पहिरे गहने . की लवला सी। --दास निति भंगन में । -प्रताप साहि लवली-संज्ञा, स्त्री० [सं० ] हरफार्योरी ३. निमिष निमिष दास रीझत निहाल हीत नामक वृक्ष। लूटेलेत मानों लाख कोटिन के लहने । उदा० जो कोउ केसव नाग लवंगलता लवली -दास पवलीनि चरावै। -केशव | लहरिया-सं० स्त्री० [हिं० लहर] साड़ी, धोती लसना-क्रि० स० [सं० लसन] १. चमकना, २. एक प्रकार का कपड़ा जिसमें रंग विरंगी दीप्त होना २. शोभित होना । टेढ़ी मेढ़ी रेखाएँ बनी होती हैं। उदा० घन बरसै दामिनि लसै दस दिसि नीर उदा०लहर लहर होत प्यारी की लहरिया ।-देव तरंग। -जसवंतसिंह लहरें-संज्ञा, पु० [हिं० लहरिया] वस्त्र विशेष, लसीली-वि० [हिं० लहना] सुन्दर, शोभित । लहरिया। उदा. ऐसेनि को अपराध न कीजिये लीजिये उदा० कहरै बिरही जन प्रापत सों लहरें लली भावते सीख लसीली। -रघुनाथ । लाल लिए पहरै ।। -रसखानि लहकना-क्रि० अ० [मनु०] झोंके खाना, लहाछह-संज्ञा, स्त्री० [सं० लव्वाक्षप ?] नृत्य लहराना, हवा में बहना, उड़ना २. दहकना __ की एक गति, नृत्य की शीघ्रता। उदा० पात पैसी पातरी विचारी चंग लहकत उदा. गोपिनु सँग निसि सरद की रमत रसिक पाहन पबन लहकाए लहकत नाहि । रसरास लहाछह प्रति गतिन की सबनि -देव लखे सब पास । -बिहारी दीरध उसास लै लै ससिमुखी सिसकति सहुबैस-संज्ञा, स्त्री० [सं० लधु+वयस] छोटी सुलफ सलौनों संक लहक लहकि-लहकि उम्र, नव यौवन । . --देव उदा० लाज मुख, लांबी लट, लाग्यो लचकौंही लहकि लहकि पावै ज्यों-ज्यों पुरवाई पौन लाँक सील सांची लहबैस काची कोरी दहकि दहकि त्यों-त्यों तन साँवरे त। डारसी। -गंग -घनानन्द लाउन-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लाव] मोटा रस्सा लहकाना-क्रि० स० [देश॰] पहनना, धारण जो हाथी आदि के बाँधने में प्रयुक्त होता है। करना। उदा० सङ्क की शृखल लाज की लाउन मानति उदा० ललित पाट अंबर को लहँगा कटि तट ग्यान के अंकुस मारे । -तोष में लहकायो । -सोमनाथ लांच-संज्ञा, स्त्री० [बुं०] रिश्वत, धूस । लहकारे-वि० [हिं० लहकना] लहराते हुए उदा० जा लगि लाँच लुगाइनि दै"दिन नाच हिलते हुए. झोंके खाते हुए। नचावत साँझ पहाऊँ। -केशव उदा०-कारे लहकारे काम छरी से छरारे छर- लाचौं-संज्ञा, पु० [सं० लांछन] दोष, कलंक हरी छबि छोर छहराति पीछरीनने । उदा० कृपा गुनहि गहि क्यों न ज्यौं न लागै भ्रम सहकै-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लहकना ] लपट, लाँचौ रे। -घनानन्द ज्वाला, वेदना, पीड़ा। लाँझ-संज्ञा, स्त्री [हिं० लन्झा] झन्झट, बाधा, उदा० याही से काहू जनैये नहीं लहक दिल की परेशानी, झमेला। - ना रही फिरि पावत । -बोधा उदा० दिन देखन कौं दांव दूरि ते बनत बनवारी लहकौर-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लहनाकौर सों अब ताह मैं परी है लाँझ -घनानन्द विवाह की एक रीति जिसमें दूल्हा और लाह-संज्ञा, स्त्री० [सं० पलात] अग्नि, पावक दुलहिन एक दूसरे के मुंह में कौर डालते हैं। २. लपट ज्वाला। उदा० ललक सखी लहकौर चली ले गावत गीत उदा० दसहूँ दिसि पलास छवि छाई । मनहं सकल रसीले । -बकसी हंसराज बन लाइ लगाई। -बोधा लहने-संज्ञा, पु० [सं० लमन] १. सौभाग्य, भाई कि सौ हौं न जान्यौ हौं गई हँसाइ अच्छा भाग्य २. लाम, प्राप्ति ३. प्राप्त व्य, हाइ लाइ लागों जाइ ऐसी कुसुम चुनाई संपत्ति । मैं । -तोष For Private and Personal Use Only

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