Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 218
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3-ग्वाल लाखे ( २०४ ) लिखनी लाखे संज्ञा, स्त्री, [सं० अभिलाष] अभिलाषा, | लाब-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] रस्सो, नाव बाँधने कामना, इच्छा । की लहासी । उदा० धीर धरि पायो हौं करीर कुंज ताई ताप उदा० फिरि फिरि चित उतही रहत टुटी लाज कर ततवीर परिहर लाख लाखे पुन । की लाव । -बिहारी लावक-संज्ञा, पु० [हिं० लवा] लवा नामक लाग - संज्ञा, स्त्री० [हिं० लगना] १. जादू, एक पक्षी। __ टोना, मन्त्र २. शत्रु, दुश्मन । उदा० मोरन के सोर पच्छिपाल और धाये, पाये उदा० १. वेई वन कुंजनि मैं गुंजत भंवर पुंज लावक चकोर दौरि हंसनि की दारिका । काननि रही है कोकिला की धुनि लाग सी _ -- देव -देव | लावन-संज्ञा, पु० [सं० लावण्य] १. सौन्दर्य, लागू-क्रि० वि० [हिं० लग=पास] निकट, सुन्दरता, लावण्य । २. लहगा का घेर पास, समीप। [देश॰] । उदा० आँखिन के आगे तम लागेई रहत नित. | उदा० १. लावन बनायौ, तौ सनेह न बनावनी पाखें जिन लागो कोऊ लोग लागू होय गो । हौ, सनेह जो बनायौ, तौ निवाहिबो -पालम बनायौ क्यों न ? -ग्वाल लाज-संज्ञा, पु० [सं० लावक] लवा, पक्षी । २. सिर लॅहगा लावन उलटि, ठनगन ठनक उदा० लाज इत, इत जी को इलाज, सु लाज अलोल । -नागरी दास मई अब लाज कुही सी। -देव | लावना-क्रि० सं० [हिं० लगाना] लगाना, लाजक-संज्ञा, पु० [सं० लाजा] धान का लावा, फेंकना, डालना, छोड़ना। लाजा। उदा० कर कुंकुम लैकरि कंजमुखी प्रिय के दृग उदा० बाल के बिलापन बियोगानल तापन को. लावन कौं झमकै । -रसखानि लाज भई मुकुत मुकुत भई लाज को। लाह-संज्ञा, पु० [देश॰]". आनन्द, हर्ष, मंगल -दास २. लाख नामक वृच, ३. कांति, चमक । लाठ-वि० [हिं० लट्ठ ] जड़, उजड्ड, मूर्ख, उदा० स्याम के संग सदा हम डोलैं जहाँ पिक लंठ। बोल, अलीगन गुंज, लाहनि माह उछाहनि उदा० तब सों रहै इच्छा मोहिं जियबे की बीच सों छहरै अँह पीरी पराग को पुंज । ही तू चाहत है मार्यो तेरी मति महा -देव लाठ है। + - रघुनाथ कैंधों दिग-भूल भूले, धुमरी न पायो घर, लाने-अव्य० [बुं०] लिए, वास्ते । कंधौं कहूँ ठुमरी सुनत रहै लाहे सों। उदा० देव अदेव बली बलहीन चले गये मोह की -वाल हौंसहिं लाने। -देव उदा०३. लाह सौं लसति नग सोहत सिंगार हार, लायक-संज्ञा, पु० [हिं० लाजक] लाजा, धान छाया सोन जरद जुही की अति प्यारो है । का लावा। -सेनापति उदा० बरषा फल फूलन लायक की। जनु हैं लाहर-संज्ञा, पु० [हिं० लाह] चमक, कांति, तरुनी रतिनायक की। -केशव लपट । लारि-क्रि० वि० [राज०] साथ। उदा० भूम धौरहर सो बादर की छांहहिं सो, उदा० हाथ धोय पीछे परी. लगी रहत नित ग्रीषम को लाहर सो मृग पास पासा सो । लारि। परी मुरलिया माफ करि, बिना -तोष मौत मति जार। -ब्रजनिधि | लिब-संज्ञा, पु०[?] दोष, त्रुटि, कमी। लालि-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लाली] १. आदर, उदा० प्रस्तुत के वाक्याथं के वर्णन को प्रतिबिंब । सम्मान, २. लालसा । जहाँ बरणिये ललित तह लखि लीजो उदा० कालिके तो नन्दलाल मोसों घालि लालि बिनु लिंब। -रघुनाथ करें, कालि ही न पाई ग्वारि जौ पै तूं लिखनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० लेखनी] कलम, हुती भली। -केशव कूची, तूलिका । For Private and Personal Use Only

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