Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan

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Page 214
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -दास रोपना ( २.० ) लखान रोपना-क्रि० स० [सं० रोपण] रखना, करना। उदा० केलि के मौन में सोवत रौन बिलोंकि उदा० जो पीय ब्याहि लायौ, तासो रोपी है जगाइवे कों भुज काढ़ी। छिपन, सब लोक लाज लोपी, दुरनीति रोना-संज्ञा, पु० [सं०आगमन] १. गौने के बाद करी है। -ग्वाल प्रथम बार पति गह जाने की रीति २. रोना, रोर-संज्ञा, पु० [देश॰] दरिद्र, दुष्ट, उपद्रवी । रुदन । उदा० राकस, अगर, लंगूर मुख, राहु, छाँह, उदा०१. सौह अनेकनि मावह अंक, करौ रति को मद, रोर। --केशव प्रति रैन की रौने । -केशव रोरना-क्रि० अ० [सं० खण] .. लड़ना, २. रौनी-वि० [सं० रमणीया सुन्दर, रमणीय। उपद्रव करना ३. शोर करना । उदा० केसव कैसे हुँ पीठि में दीठि परी कुच उदा० १. लंकगढ़ तोरिबे तें रावन सों रोरिबे कुंकुम की रुचि रौनी। -केशव तें माहिं भवबंधन ते छोरिबो कठिन है। तुव चितौनि ठिकु ठौनि भ्र व नौनि, -पद्माकर निरखि मन रौनि । -दास रोरी-संज्ञा, पु० [सं० रोल] १. कलह, झगड़ा, । रोस-संज्ञा, स्त्री० [फा० रविश] १. बाग की २. कोलाहल क्यारियों के मध्य का मार्ग २. चाल, व्यबहार उदा० १. मेरो रो कान्हर मन मोहो बात प्रेम रग-ढंग । रस रोरी । - बकसी हंसराज उदा० १. हौंसन बँधाय रौस रोसन की रोसे रोहना --क्रि० अ० [सं० रोहरण] १. प्राकर्षित जहाँ सकल सिचाय सीरे नीरहू सेंवारी मैं। करना, खीचना, मोहित करना । २. पहनना, - प्रतापसिंह चढ़ाना, डाल लेना [क्रि० स०] २. रीति को रोसन आपनी हौसनि पानी उदा० १. ह्व नबोढ कहुँ मुग्ध-तिया, मोहन मन परासन को भरती है। ठाकर रोहैं। हरि-मुख मुनि कहुँ बैनु, सबै-विधि | रोहाल--संज्ञा, पू० [फा० रहवार] घोड़ा, अश्व । राधा माहैं। "-. द्विजदेव । उदा० जदपि तेज रौहाल बल पलको लगी न २. एक हंसिनी सी विषहार हिये रोहियो, बार, तउ वेंड़ो घर को भयो पैंडो कोस --केशव हजार। -बिहारी रौन--संज्ञा, पु० [सं० रमण ] पति. रमण।। सु रोहाल की चाल उत्ताल ऐसे. चलै चारु नायक । चौगान में चित्त जैसे । -पद्माकर लंक-संज्ञा, स्त्री० [सं०] कटि, कमर । उदा० भसमी बिथा पै नित लंघन करति है । उदा. लागत समीर लंक लहक समूल अंग फूल - घनानन्द से दुकुलन सुगंध विथुरो परै । -देव लकी-संज्ञा, स्त्री० [अ० लक्का कबूतर]कबूतरी, लंगर-संज्ञा, पु० [फा०] १. लँगोट, २. वह भोजन जो सदा गरीबों को बांटा जाता है, उदा। थकी थहरानी छबि छको छहरानी धकधकी सदावर्त, ३. ढीठ, बदमाश । धहरानी जिमि लकी लहरानी है। उदा० २. लंगर का दाता अरु भूखन कनक देत, -दास एक साधु मन बीस बिस्वा राखि लेत हैं। | लखान-वि० [सं लक्ष] १. लाख, २. अगणित, -सेनापति बहुत ज्यादा । लंगर सु अनगिनित बटत सार।-जोधराज | उदा० कह.यौ चाही सो तौँ तुम मोहीं सौं बुलाय लंघन - संज्ञा, पु० [सं० ] उपवास, व्रत कही पान-कान परे तें लखान कान परिहै। निराहार । -केशव केशवराय For Private and Personal Use Only

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