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-दास
रोपना ( २.० )
लखान रोपना-क्रि० स० [सं० रोपण] रखना, करना। उदा० केलि के मौन में सोवत रौन बिलोंकि उदा० जो पीय ब्याहि लायौ, तासो रोपी है
जगाइवे कों भुज काढ़ी। छिपन, सब लोक लाज लोपी, दुरनीति रोना-संज्ञा, पु० [सं०आगमन] १. गौने के बाद करी है।
-ग्वाल
प्रथम बार पति गह जाने की रीति २. रोना, रोर-संज्ञा, पु० [देश॰] दरिद्र, दुष्ट, उपद्रवी । रुदन । उदा० राकस, अगर, लंगूर मुख, राहु, छाँह, उदा०१. सौह अनेकनि मावह अंक, करौ रति को मद, रोर।
--केशव प्रति रैन की रौने ।
-केशव रोरना-क्रि० अ० [सं० खण] .. लड़ना, २. रौनी-वि० [सं० रमणीया सुन्दर, रमणीय। उपद्रव करना ३. शोर करना ।
उदा० केसव कैसे हुँ पीठि में दीठि परी कुच उदा० १. लंकगढ़ तोरिबे तें रावन सों रोरिबे
कुंकुम की रुचि रौनी।
-केशव तें माहिं भवबंधन ते छोरिबो कठिन है।
तुव चितौनि ठिकु ठौनि भ्र व नौनि, -पद्माकर निरखि मन रौनि ।
-दास रोरी-संज्ञा, पु० [सं० रोल] १. कलह, झगड़ा, । रोस-संज्ञा, स्त्री० [फा० रविश] १. बाग की २. कोलाहल
क्यारियों के मध्य का मार्ग २. चाल, व्यबहार उदा० १. मेरो रो कान्हर मन मोहो बात प्रेम रग-ढंग । रस रोरी ।
- बकसी हंसराज उदा० १. हौंसन बँधाय रौस रोसन की रोसे रोहना --क्रि० अ० [सं० रोहरण] १. प्राकर्षित
जहाँ सकल सिचाय सीरे नीरहू सेंवारी मैं। करना, खीचना, मोहित करना । २. पहनना,
- प्रतापसिंह चढ़ाना, डाल लेना [क्रि० स०]
२. रीति को रोसन आपनी हौसनि पानी उदा० १. ह्व नबोढ कहुँ मुग्ध-तिया, मोहन मन
परासन को भरती है।
ठाकर रोहैं। हरि-मुख मुनि कहुँ बैनु, सबै-विधि | रोहाल--संज्ञा, पू० [फा० रहवार] घोड़ा, अश्व । राधा माहैं।
"-. द्विजदेव । उदा० जदपि तेज रौहाल बल पलको लगी न २. एक हंसिनी सी विषहार हिये रोहियो,
बार, तउ वेंड़ो घर को भयो पैंडो कोस --केशव हजार।
-बिहारी रौन--संज्ञा, पु० [सं० रमण ] पति. रमण।। सु रोहाल की चाल उत्ताल ऐसे. चलै चारु नायक ।
चौगान में चित्त जैसे ।
-पद्माकर
लंक-संज्ञा, स्त्री० [सं०] कटि, कमर ।
उदा० भसमी बिथा पै नित लंघन करति है । उदा. लागत समीर लंक लहक समूल अंग फूल
- घनानन्द से दुकुलन सुगंध विथुरो परै । -देव लकी-संज्ञा, स्त्री० [अ० लक्का कबूतर]कबूतरी, लंगर-संज्ञा, पु० [फा०] १. लँगोट, २. वह भोजन जो सदा गरीबों को बांटा जाता है, उदा। थकी थहरानी छबि छको छहरानी धकधकी सदावर्त, ३. ढीठ, बदमाश ।
धहरानी जिमि लकी लहरानी है। उदा० २. लंगर का दाता अरु भूखन कनक देत,
-दास एक साधु मन बीस बिस्वा राखि लेत हैं। | लखान-वि० [सं लक्ष] १. लाख, २. अगणित,
-सेनापति बहुत ज्यादा । लंगर सु अनगिनित बटत सार।-जोधराज | उदा० कह.यौ चाही सो तौँ तुम मोहीं सौं बुलाय लंघन - संज्ञा, पु० [सं० ] उपवास, व्रत
कही पान-कान परे तें लखान कान परिहै। निराहार ।
-केशव केशवराय
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