________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लखिया ( २०१ )
लद्धना लखिया-संज्ञा, स्त्री० [सं० लदमी] लचमी । | लछारना-क्रि० अ० [?] धूपना, सुवासित उदा० साँवरी सलोनी गुरणमंती गज गौनी महा करना । सुन्दरी, सुघर लाख-लाख लखियन में। - देव | उदा. कैसे यह राजत सुगन्ध के लछारे कहिये लग-संज्ञा, स्त्री [हिं० लग्गी] लग्गी, कंपा,
जैसे यह कोमल ललित सुकुमारे हैं। जिससे चिड़िया फंसाई जाती है।
-पजनेस उदा० लहलहाति तन तरुनई लचि लग लौं लफि चीकने सघन अंधियारे ते अधिक कारे लसत जाइ। लगै लोक लोइन भरी लोइनु लेति
लछारे सटकारे तेरे केस हैं। लगाइ। -बिहारी
-मनोज मंजरी लगबगरी-वि० [हिं० लगबगाना=लचकना]
चतुर्थ कलिका से लचलची, नरमीली।
लटकना-क्रि० स० [हिं० लटक] मस्ती से उदा० लंक लगबगरी कलंक लग बगरी सखीन झूमना, बलखाना, २. बन्द होना, समाप्त
। सँग बगरी सखीन संग सगरी । -देव होना। लगलगी वि० [अ० लक़लक़] सुकुमार, कोमल, उदा० .. चटकीलो भेष करे, मटकीली भांति लचकीली [हिं० लचलची] २. दुर्बल अंग
सोही, मुरली अधर धरे लटकत पाय हौं । वाला।
-घनानन्द उदा. अखियाँ अधर चुमि, हाहा छोड़ो कहे
२. जाने जौन काज को प्ररंभ कर दीन्हों घूमि, छतियाँ सो लागी, लगलगी सी
ताको, तीन काज कहा बिन भये लटकत लहकि के। -देव
-ठाकुर उरज उचौहैं भुज भाई ज्यों नचौहैं,
लटकीली-वि० [हिं० लचक] लचीली, जल्दी मौंह जघन सघन लंकलीक सी लगलगी। झुक जाने वाली ।
उदा० लटकीली लंक त लटाइ लटे लेत लोग. लगाना-क्रि० स० [हिं० लगना] जलाना, सिर पटकीली भई सौतिन की छति है। प्रज्वलित करना।
-बेनी प्रवीन उदा० दरस, परस, कृपा-रस सींचि अंग-लता, लटपटी-वि० [हिं० लटपटाना] १. थकित जो तुम लगाई सोई मदन लगाई है।
२. शिथिल, ढीलाढाला।
-सेनापति उदा० लपटी न लौटि, नील पटा ह्व', सलौट लगालगी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लाग] १. लाग
लटी लाज लटपटी, लटपटी भुजमूल पर । चोरों का उपद्रव, २. देखा देखी ।
-देव उदा० क्यौं बसिय क्यों निबयि, नीति नेह पुर लटी-वि० [सं० लट्ट ] १. बुरी, खराब
नाहिं । लगालगी लोइन करें, नाहक मन । २. तुच्छ, हीन । बँधि जाँहि ।
-बिहारी उदा० कहिबे सुनिबे की कळू नहियाँ लटी मौ लगि-संशा, स्त्री० [हिं० लाग ] प्रेम की
मली को दुःख पावन हैं।
-ठाकुर लगन ।
तुम ऐसहीं मोहि लटी करतो मन मेरी उदा० पुतरी अतुरीन कहूँ मिलि के लगि लागि कही नहीं मानतु है।
-बोधा गयो कहुँ काहु करटो।
.-रहीम लड़क-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लटक] प्रदा, लगुन - संज्ञा, पु० [सं० लग्न] १. शुभ मुहूर्त, १. अंगों, की विशेष मुद्रा, मस्ती, २. लचक । २. विवाह, शादी।
उदा. पिय सों लड़कि प्रेम पगी बतरानि मैं । उदा० यह मन भयनो लगुन को नारियल सब नेगन
-घनानन्द के माहीं।
-बकसी हंसराज | लड़वाना-क्रि० स० [हिं० लाड-प्यार] दुलार लछना-क्रि० स० [हि० लछना= सजाना] | करवाना, लाड़-प्यार करवाना। सजाना, अलंकृत करना ।
उदा० प्राली या महल औरे टहल उठाय राखी, उदा० काम बस सूपन खा नाम गनिका सी तरी, | पाठहू पहर लड़वाइयति लाड़िली । क्रोध बस रावन तो जो लंक लाछेई ।
-देव -पद्माकर लद्धना-क्रि० सं० [सं० लब्ध] प्राप्त करना,
For Private and Personal Use Only