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लदाइ ( २०२ )
लवला उपलब्ध करना ।
लमकाना-क्रि० स० [हिं० लमाना] १. लम्बा उदा० आनन्द लद्धि, चपि भुजनि मद्धि ।
करना २. दूर तक आगे बढ़ाना । फन को हलाइ, नच्चे सुभाइ ।
उदा० १. लांबी गुदी लमकाइ कै काइ लियो -सोमनाथ
हरि लीलि, गरो गहि पीरयो। -देव .... जक्यो जीव जंगलिय चैन लद्धे न अद्ध लये-सम्प्रदान, कार० [बुं० लाने] लिए, वास्ते ... छन ।
-गंग उदा० लावै ना सुगंधहार मगावै न पेन्हिबो को लवाइ-संज्ञा, पु० [हिं० लदाव] वह पक्की
दूरिही रखावै मेवा पावै खैबे के लये। जुड़ाई जो छत अथवा द्वार के कड़े में कालबूत ।
-रघुनाथ के सहारे की जाती है।
लरकना-क्रि० प्र० [हिं० लटकना] लटकना उदा० कालबूत दूती बिना जुरै न और उपाइ। टॅगे रहने । फिरि ताके टार बनै पाकै प्रेम लदाइ। उदा० मुसुकांनि बिलोकत वा तिय की मुकुता
-बिहारी लर मैं लरकेई रहैं।
-द्विजदेव लदाई-संज्ञा, स्त्री० [हिं० लादना] ब्यथित,
अंगन उघारौ जनि लंगर लगेई मांग मोती करने का भाव, पीड़ित करना, मु० लदाई
लर टूटत लरकि भाई लरकी। —देव करना=दबाना, पीड़ित करना ।
लरजना -- क्रि० अ० [पु.] कांपना, हिलना उदा० बिन काजहि बोधा लदाई करै पहिचानै न १. धीरे से किवाड़ आदि बंद करना [क्रि०स०] बावरे अन्ध भये ।
-बोधा उदा० कहै पद्माकर लवंगनि की लोनी लतालपटी-वि० [हिं० लपट=छोटा] छोटी।
लरजि गई ती फेरि लरज न लागी री उदा० पीत पटी कटि में दुपटी लपटी लकुटी हठी
-पद्माकर मो मन भाई।
-हठी
लाजनि हो लरजौं गहिरी, लपना-क्रि०अ० [सं० जल्प] जल्पना, कहना । बरजौं गहिरी कहिरी केहि दायन । -देव उदा० लपने कहीं लौं बालपने की बिमल बातें ?
२. श्रावति चली है यह विषम वियारि देखि । -देव
दबे-दबे पाइन किंगारनि लरजि दै। लपटोही--संज्ञा, स्त्री० [हिं० लपट+सं० हृदय]
-द्विजदेव हृदय की लपट, मन की पीड़ा, ज्वाला।
लरबरी-वि० [हिं. लड़खड़ाना] लड़खड़ाने उदा० कहियो बटोही तिय निरखै बटोही, पिय वाली, लटपटाने वाली । जाइ लपटोही मिटि जाइ लपटोही है। उदा० जानि जानि धरीतिय बानी लखारी सब,
-तोष
प्राली तिहि धरी हँसि-हसि परी लौटि लपेटा संज्ञा, पु० [हिं० लपेट] पगड़ी, पाग ।
लौटि ।
-दास उदा० केसरी लपेटा छैल विधि सों लपेटे मुख | लवढ़ना-क्रि० प्र० [हिं० लिपटना] लिपटना बीरा कंठ हीरा जोति उपमा लजायबी। उदा० ज्यों मैं खोले किवार त्यों ही मानि -घनानन्द लवढि गो गरे।
-घनानन्द लबाना-क्रि० प्र० [हिं० ले पाना] साथ में | लवना-क्रि० प्र० [सं० लो] चमकना, दमकना रखना, बुलाना, ले आना ।
उदा० चटक चोप चपला हिय लवै । सबही दिस उदा. पापी है तो नीर पैठि नागन लबाय ले ।
रस प्यासनि तव ।
-घनानन्द --मालम लबनि-संज्ञा, स्त्री [हि० लप] लपटें, प्राग की लबिंद--संज्ञा, पु० [सं० लप्] बकवादी ।
लो, आँच, ज्वाला। उदा० सुनि लोभ लबिंद लबार जग, हौं दाता तू । उदा० चंद से बदन भानु भई वृषभानु जाई उवनि माँगनो।
-केशव
लुनाई की लवनि की सी लहरी। -देव लमकना-क्रि० प्र०, [हिं० लपकना] १. उमंगित
नूतन महल, नूत पल्लवनि छुवै छुवै, सेद होना २. लपकना ३. उत्कंठित होना ।
लवनि सुखावत पवन उपवन सार। -देव उदा० सजि ब्रजबाल नंदलाल सों मिल के लिये, लगनि लगालगि में लमकि लमकि उठे। | लवला-संज्ञा, स्त्री॰ [हिं० लपट, सं० लोका]
--पद्माकर लपट, ज्योति, सौन्दर्य ।
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