Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan
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सोधि।
मति ( १८३ )
मनवा मत मैं न । कुही कुही कहि कहि उठे, बीच का, बिचुप्रा । करि करि राते नैन।
-बिहारी उदा० जेते मधियाती सब तिन सौं मिलाप मति -संज्ञा, स्त्री० [समता] बराबरी, तुलना, छूट्यो, कहिबी सँदेस हूँ कौं छूट्यौ सकुचन समता ।
ते ।
-सेनापति उदा० जौ मघवा-मनि को सतु सोधिय तोऽब मधु--संज्ञा, पु० [सं०] १. पानी २. अमृत । कहा परस पय की मति ।
उदा. जाकी मन अनुराग बस ह क रह्योमधू -घनानन्द
बड़े-बड़े लोचननि चंचल चहति है। मतीरा-संज्ञा, पु० [राज तरबूजा ।
-सेनापति उदा० विषम बृषादित की तृषा जियो मतीरनि मधुकर-संज्ञा, पु० [सं०] मीठा नीबू ।
--बिहारी उदा० देव मधुकर ढक ढकत मधक धोखे, मथाह-संज्ञा, पू० [सं० मस्तक] १. झगड़ा,
माधवी मधुर मधु लालच लरे परत । मु० मथाह करना=झंझट करना, झगड़ा
-देव - करना, रायसा करना।
मधुगंजन-संज्ञा, पु० [सं०] मधु नामक राक्षस उदा० मानि ले मेरी कही तू लली अहे नाह के को मारने वाले श्रीकृष्ण, मधुरिपु। नेह मथाह न कीजै।
-बोधा उदा० गुन रूप निधान बिचित्र बधूहित प्यारी मदन-संज्ञा, पु० [सं०] १. बकुल नामक वृक्ष,
पिया मधूगंजन की।
-पालम २. हाथी ३. कामदेव ।
मधुपाली-संज्ञा, स्त्री० [सं० मधुप+अवलि] उदा० १. बैस की निकाई सोई रितु सुखदाई तामैं
भ्रमरावली, भौरों का समूह । तरुनाई उलहत मदन मैमंत है।
उदा. बिथुरी कपोलन पै जुलफै मरोरदार -घनानन्द
. सरमानी समता मजेज मधुपाली की । मदनबान-संज्ञा, पु० [सं० मदन+बाण],
--रंगपाल १. एक प्रकार का बेला पुष्प २. कामदेव का
मधुबत-संज्ञा, पु० [सं० मधुबत] भ्रमर,
भौंरा। बाण। उदा० सेवता हैं बजे जिन मारे हैं मदन बान परे
उदा० माधवी के मधुराधरै को मधु लै मधुमास
मधुब्रत मातो। इश्कपेचन मैं रीति और ही गहीं ।-ग्वाल
-देव
मध्य-संज्ञा, स्त्री० [सं०] कटि, कमर । मदनालय-संज्ञा, पु० [सं०] स्त्रियों की गुप्ते
उदा० सोहति बहुत भाँति चीर सौं लपेटी सदा न्द्रिय योनि ।
जाकी मध्य दसा सो तो मैंन को अधार उदा. देव मृदु निनद विनोद मदनालय रवरटत
--सेनापति समोद, चारु चेटुआ चटक के।
भूपर कमल युग ऊपर कनक खम्भ ब्रह्म -देव
की सी गति मध्य सूक्षम अनिंदीबर। मदमोविनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० मदयंतिका]
--देव मल्लिका नामक पुष्प ।
मनक-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] अावाज, शब्द । उदा० जाही जुही मल्लिका चमेली मदमोदिनी उदा० आलम कहै हो जात मनक न सुनीकान । की कोमल कमोदिनी की सुषमा खराब
-आलम की ।
-पद्माकर । मनकना--क्रि०अ० [अनु॰] हिलना-डुलना । मदी-संज्ञा. स्त्री० [सं० मद] शराब, पासव । । उदा. जापता करनहारे नेकह न मनके ।-भूषण उदा० हियरा अति औटि उदेग की आँचनि- मनभौत-वि० [हिं० मन भाया] इच्छित, मन
च्वावत मांसूनि मैन-मदी । -धनानन्द भाया। मदै-क्रि० अ० [सं० मद] उन्मत्त होना, मस्त उदा० अलि कान्ह लता-बनिता मधि मै मधु पान होना, आनंदित होना।
कियो मनमौत समैं ।
-मालम उदा० मदै उनमाद गदै गदनाद, बदै रसबाद ददै मनवा-संज्ञा, पु० (देश०) कपास । मुख अंचल ।
--देव उदा० जाइ मिली पनवां पहिरे अनवा तिय मधियाती-वि० [सं० मध्यवर्ती] मध्यवर्ती, खेत खरी मनवा के ।
-तोष
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