Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan
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मंग - संज्ञा, स्त्री० [हिं० मांग] जटा, सिर । उदा० भोग के के ललचाइ पुरन्दर, जोग के गंग लई धरि मंगहि | रसखानि
मंगली - संज्ञा, स्त्री० [सं०] हलदी, हरिद्रा । उदा० मंगल ही जु करी रजनी विधि, याही ते मंगली नाम धर्यो है । केशव
मंजि -संज्ञा, पु० [सं०] कमल कोश । उदा० कंज की मंजि मैं खंजन मानौ उड़े चुनि चंचुनि चंचु चुभे के ।
कंज की मंजि मैं, कुंदन की दुति, खनि इंदु पियूषनि पोसी । - देव मंजुखा— संज्ञा, स्त्री० [सं० मंजूषा ] पिटारी, छोटा पिटारा, डिब्बा । उदा० नंदराम श्रमित अभूषण के जालन की लालन के माल की सो मंजुखा उघारी सी । -नंदराम मंजुघोषा - संज्ञा, स्त्री० [सं०] १. इन्द्र की एक अप्सरा- २. मृदुभाषिणी (वि०) । उदा० जीतत कपोल कौ तिलोत्तमैं अनूप रूप बात बात ही मैं मंजु घोष बरसति है । - सेनापति मंजे क्रि० स० [सं० मज्जन] डुबकी लगाना,
स्नान करना ।
उदा० कहै पद्माकर सु दोऊ बिपरीत माँझ, महमही मंजे मजा मंजुल मनोज की ।
—पद्माकर
मंझा-संज्ञा, पु० [?] एक प्रकार का मजबूत डोरा, जिससे बच्चे पतंग उड़ाते हैं । उदा० भंझा पौनबारे देत मंझाते तरुन फारे, संझाते उलूक कूर पारे विकरारे मैं । - बेनी प्रवीन
मंदगति - संज्ञा, पु० [सं०] शनिग्रह | उदा० अतिमंद चाल सोइ मंदगति, महामनोहर जुबति यह । सबही फलदायक देखियतु, जाको सेवत नवौ ग्रह । - ब्रजनिधि मंबरा - संज्ञा, पु० [सं० मंडल ] एक तरह का बाजा, वाद्य विशेष ।
म
उदा०
आनक पटह बर नेवर बजन लागे, तार सुर मंदरन तानन मुरत है । -देव मंदरि - वि० [सं०] मंद = कृश + उदरि= कृशोदरि] कृशोदरी, पतले कमरवाली, क्षीण कटि वाली (नायिका) ।
उदा० बंदन भाल, हिये हरि चंदन, लाये मिले मृदुमेद मंदूदरि । —देव मंद्र – संज्ञा, पु० [सं०] संगीत के स्वरों के तीन भेदों में से एक
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उदा० संभु के अधर माहि काहे की सुरेख राज, गाई जाति रागिनी सु कौन सुर मंद्र मा ।
-- पद्माकर
मकबूल - वि० [अ० मक़्बुल] रुचिकर, सर्व प्रिय । उदा० दोऊ मकबूल मखतूल भूला भूलि भूलि देत सुखमूल कहि तोष भरि बरसात
- तोष
मखतूल -- संज्ञा, पु० [फा०] काला रेशम । उदा० १. लै मखतूल गुहे गहने रस मूरतिवंत सिंगार के चाख्यौ । - देव २. मखतुल के फूल झुलावत केशव मानु मनो ससि अंक लिये । - केशव मगचारी - संज्ञा, पु० [सं० मार्ग + हिं॰ चारी] पथिक, राहगी । उदा० टारि धरौ दुख दूर अली, सुभलो विधि श्रावहिंगे मगचारी । - गंग मगर – संज्ञा, पु० [सं० मार्ग ] मार्ग, रास्ता । उदा० घिरि सो प्रकास भूमि, भिरि सो गरूडहू सों, गिरि सो पर्यो है गिरि काहू, जा मगर में । - देव मगरना -क्रि० अ० [हिं० मंगलना ] जलना, मंगलना मुद्दा • होली मंगलना - होली जलना । उदा० तिहारे निहारे बिन प्राननि करति होरा बिरह अँगारनि मगरि हिय होरी सी ।
-धनानन्द
भगी — संज्ञा, स्त्री० [सं० मार्ग + हि० ई (प्रत्य० ) = ] मार्गी, पथिक या राहगीर को स्त्री । उदा० डोलें डगमगी मग, मगी सी' मनोरथ के,
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