Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan
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मुंचति
मुलाना मुंचित-वि० [सं० मुंच] मुक्त, बिखरे हुए खुले। मुद्रित-वि० [सं०] १. आवृत्त, घिरा हुआ,
चिह्नित २. छाप लगाना, सिक्का चलाना ।: . उदा० चीकने मेचक रुचिर मुंचित सुकुंचित केस । । उदा० १. मुद्रित समुद्र सात मुद्रा निज मुद्रित
-घनानन्द कै, भाई दिसि दिसि जोति सेना रघुनाथ की मुचंड-वि० [हिं० मुच्चा+अंड] १. भद्दो,
- केशव २. मोटी।
मुधाकांति संज्ञा, स्त्री [सं०] असत्यकांति उदा० मोटी मुचंड महामतवारिन मूड़ पै मीच
मृगतृष्णा । फिरै मड़रानी।
-पद्माकर
उदा० कौल सनाल कि बाल के हाथ छिपी कटि मुचताना-क्रि० स० [सं० मोचन ] छोड़ना,
कांति की भाँति मुघाकी ।
- देव त्यागना ।
मुफित . क्रि० वि० [अ० मुफित] अत्यधिक, उदा० मान मुचितेय उचितैय पिय संग रंग रति
बहुत ज्यादा । के रितये बल काम कमनैत को -देव
उदा० नन्दराम कामिनी अतरतर कीन्हे बास केस बाहन बिधाये बांह, जघन जघन माह कहे
पास गुंफित मुफित झोप झलकी । छांडो नाह नाहि गयो चाहे मचिक।-देव मचे-क्रि० वि० हिं० मुचामुच्च] पूर्णतया,
-नन्दराम अच्छी तरह ।
मुरमुरे--वि० [अनु०] चुरमुर । उदा० माधव जू मधुमास मधुम्बन राधिका सों
उदा० फेबी गूझा गजक मुरमुरे सेव सुहारे । करि केलि मुचेते। -मालम
-सोमनाथ मचेत-वि० [सं० मुंचित] छुटे हुए, मुक्त।
मुरवा-संज्ञा, पु० [देश॰] एडी के ऊपर के उदा. हयगय समय ह चिक्करत नहिं टरत
चारों तरफ का घेरा।
उदा०--पिय बियोग ते तरुनि की पियरानी मुख __ बीर मुचेतहू।
--पद्माकर मुतिसरी-संज्ञा, स्त्री, [सं० मुक्ता+सृक] मुक्ता
जोति । मृदु मुरवा की बूँघुरी कटि में किंकिन
होति । लड़ी, मोती की लड़ी।
-सोमनाथ उदा० लूटि सी करति कलहंस यग देव कहै द्रटि
मुरस्सैकारी-वि० [अ० मुरस्सः-जड़ाव ] मुतिसरी छिति छूटि ठरहरी लेति ।-देव
जड़ावदार जडाऊ। मुदाम-अव्य [फा०] सदैव, हमेशा ।
उदा० बैठी है हिंडोरै बीच तखत मुरस्सैकारी जेब उदा० सो अन्योन्य आयुस मैं दोऊ जहाँ उपकरें.
सरदारी की मजेज न भुलावहीं । कहै कबि दूलह यों रचना मुदाम की । --
-नागरीदास दुलह बूड़ति अथाहैं, कुल धरम निवाहै कौन | मुरार-संज्ञा, पु० [सं० मृणाल] कमलनाल की बाबरी? बिलोकि यह उकति मुदाम की।
जड़, कमलनाल । -द्विजदेव
उदा.-बार सी मरार तार सी लौं स तजी मैं अब मुदिर-संज्ञा, पु० [सं०] बादल, मेघ ।।
जीवित ही हहै वह प्रानायाम साधी उदा० कहैं मतिराम दीने दीरघ दुरद बृन्द, मुदिर
सी।
-दास से मेदुर मुदित मतवारे हैं। -मतिराम मुरासा-संज्ञा, पु० [अ० मुरस्सा] कर्ण का एक मारुत मंडल मध्य में, मेदुर मुदिर मिलाहि
भूषण । -रघुराज
उदा० लसै मुरासा तिय स्रवन यौं मुकतनु दुति मुद्दति--संज्ञा, स्त्री, [अ० मुद्दत ] अवधि, बहुत
पाइ।
-बिहारी दिन, अरसा ।
मुलकना-क्रि०प० [देश॰] पुलकित होना, नेत्रों उदा० कहै कवि गंग यह देखिबे को प्राज काल.
में प्रसन्नता प्रकट करना, २. झांकना। काबली की मुद्दति गिरीस गिरवान की। उदा० १. सकुचि सरकि पिय निकट ते, मुलकि
-गंग कछुक, तन तोरि ।
-बिहारी मुद्ध--वि० [सं० मुग्ध] मूर्ख, मूढ़ ।
२. प्रेमभरो पुलकै मुलक उर ब्याकुल के उदा० गत बल खान दलेल हुव, खानबहादुर मुद्ध
कुल लोक लजावै।
-देव भूषण | मुलाना-क्रि० स० [प्रा० मुर] १. उत्पीड़ित
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