Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan
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मेदुर
मोत मेदुर-वि० [सं०] १. सघन, २. कोमल ।। है।
-आलम उदा० १. मारुत मंडल मध्य में, मेदुर मुदिर मैरु-संज्ञा, स्त्री० [सं० मृदर प्रा० मिथर] सर्प मिलाहि ।
रघुराज | के विष की लहर। कहै 'मतिराम' दीने दीरघ दुरद बृ'द, मुदिर से उदा. घेरु घर बाहर ते मेरु सो परत पावै हेरि मेदुर मुदित मतवारे हैं।
-मतिराम
टेरि हारी हितू गाररुह हरिसी। -देव मेर- सज्ञा, पु० [सं० सुमेरु] पुराणों में देखे ताहि मैरु सो पावत मनहु भजु गिनि कारी । उल्लिखित एक पहाड़ जो सोने का माना गया
__-बकसी हंसराज
मैलना-क्रि० स० [देश॰] १. दीपक बुझाना, उदा० उन्नत उरोज कसी कंचुकी कुसुम्भी लसी २. रखना, डालना। . भुजबन्द मोती माल कंठसिरी मेर मैं ।
मुहा० दिया मैल डारना-दीपक बुझाना ।
बेनी प्रवीन उदा० १. दिया मैल डारो उघारो न देहं । छुवो मेलना-क्रि० प्र० [हिं० मेल+ना (प्रत्य॰)]
ना पिया मो हिया पाइ ऐहं । -बोधा १. एकत्रित होना, इकट्ठा होना, २. मिलना, मोई--वि० [हिं० मोयन] भीगी हुई, प्रार्द्र, ३. फकना, रखना, पहनाना डालना (क्रि० | पगी हुई, डूबी हुई । स०)।
उदा. पानि परी चित बीच अचानक जोबन रूप उदा० १. केशव बासर बारहें रघुपति के सब
महारस मोई।
-देव बीर, लवणासुर के यमहि जनु मेले यमुना मोकर-संज्ञा, स्त्री० [सं० मुक्ति] स्वतंत्रता तीर ।
-केशव आजादी । ३. डेल सो बनाय प्राय मेलत सभा के बीच, उदा० प्रेम पढ़ाइ, बढ़ाइ के बंधनु दोनों चढ़ाइ, लोगनि कबित्त कीबो खेलि करि जानो है।
कढ़ाइ कै मोकार ।
-देव -ठाकुर मोकल-वि० [सं० मदगलित] मदोन्मत्त, मद मैगल गवन-वि० [सं० मदकल+गमन] गज- युक्त । गामनी, मदगलित हाथी की भांति गमन करने । उदा. कद के बिलंद मद मोकल जे मथिबे को वाली।
मंदर उदधि दावादारनि के दल के ।-गंग उदा० स्रम कुम्हिलानी बिललानी बन बन डोलैं मोकुल-वि० [सं. मदगलित] मदोन्मत्त, मद मैगलगवन मुगलानी मुगलन की।
युक्त ।
-भूषण उदा० गोकुल मैं कोकुल न मोकल सनि गावै. मैजलि-संज्ञा, स्त्री० [अ० मंजिल] १. पड़ाव
कोकिल कलापिन प्रलाप पिक बैनी के। मंजिल २. यात्रा, सफर।
-देव उदा० पास उर धरे परे पायन पसारि घरै, मोच--संज्ञा, पु० [सं० मोचन मुक्ति, छुटकारा, मैजलि समाइ सोइ गये कैसे मन के।
मोचन, समाप्ति ।
--बेनी प्रवीन उदा० मोचु पंच बान को भरोच अभिमान को ये मैंन-संज्ञा, पु० [हिं०मायन], मायन, विवाह में __ सोच पतिप्राण को सकोच सखियन को। होने वाला मातृ एवं पितृ पूजन।
--देव उदा० नीकी अगवानी होत सूख जनबासौ सब मोजरि--संज्ञा, पु० [राज.] जूता, पदत्राण । सजी तेल ताई चैन मैंन मयमंत है।
उदा० जरीस जोंति जा मयं, दिपंत कंठ दामयं,
-सेनापति } प्रसंसि पाइ मोजरी, जराउ हेम संजुरी। मैन-संज्ञा, पु० [सं.] . मोम ०. कामदेव ।
-मान कवि उदा० १. सेज मैन सारी सी है सारी हूँ बिसारी मोजी-संज्ञा, स्त्री० [राज० मोजरि] जूती, सी है।
मालम
पदत्राण । मैनसारी-संज्ञा, स्त्री० [सं० मदन+सारि= उदा० मोजी सिये जरदोजी बुटीन उरोज उठे गोट] मोम की बनी हुई गोट या पासा।
अठिलात सकोचनि ।
-देव उदा० सेज मैन सारी सी है सारी हूँ बिसारी सी मोत--संज्ञा, स्त्री॰ [सं० मूत] मोटरी, गठरी ।
है। विरह बिलाति जाति तारे की सी लीक | उदा० जज्ञ कर्म बिनु कर्म जो जगबंधन ते होत ।
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