SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेदुर मोत मेदुर-वि० [सं०] १. सघन, २. कोमल ।। है। -आलम उदा० १. मारुत मंडल मध्य में, मेदुर मुदिर मैरु-संज्ञा, स्त्री० [सं० मृदर प्रा० मिथर] सर्प मिलाहि । रघुराज | के विष की लहर। कहै 'मतिराम' दीने दीरघ दुरद बृ'द, मुदिर से उदा. घेरु घर बाहर ते मेरु सो परत पावै हेरि मेदुर मुदित मतवारे हैं। -मतिराम टेरि हारी हितू गाररुह हरिसी। -देव मेर- सज्ञा, पु० [सं० सुमेरु] पुराणों में देखे ताहि मैरु सो पावत मनहु भजु गिनि कारी । उल्लिखित एक पहाड़ जो सोने का माना गया __-बकसी हंसराज मैलना-क्रि० स० [देश॰] १. दीपक बुझाना, उदा० उन्नत उरोज कसी कंचुकी कुसुम्भी लसी २. रखना, डालना। . भुजबन्द मोती माल कंठसिरी मेर मैं । मुहा० दिया मैल डारना-दीपक बुझाना । बेनी प्रवीन उदा० १. दिया मैल डारो उघारो न देहं । छुवो मेलना-क्रि० प्र० [हिं० मेल+ना (प्रत्य॰)] ना पिया मो हिया पाइ ऐहं । -बोधा १. एकत्रित होना, इकट्ठा होना, २. मिलना, मोई--वि० [हिं० मोयन] भीगी हुई, प्रार्द्र, ३. फकना, रखना, पहनाना डालना (क्रि० | पगी हुई, डूबी हुई । स०)। उदा. पानि परी चित बीच अचानक जोबन रूप उदा० १. केशव बासर बारहें रघुपति के सब महारस मोई। -देव बीर, लवणासुर के यमहि जनु मेले यमुना मोकर-संज्ञा, स्त्री० [सं० मुक्ति] स्वतंत्रता तीर । -केशव आजादी । ३. डेल सो बनाय प्राय मेलत सभा के बीच, उदा० प्रेम पढ़ाइ, बढ़ाइ के बंधनु दोनों चढ़ाइ, लोगनि कबित्त कीबो खेलि करि जानो है। कढ़ाइ कै मोकार । -देव -ठाकुर मोकल-वि० [सं० मदगलित] मदोन्मत्त, मद मैगल गवन-वि० [सं० मदकल+गमन] गज- युक्त । गामनी, मदगलित हाथी की भांति गमन करने । उदा. कद के बिलंद मद मोकल जे मथिबे को वाली। मंदर उदधि दावादारनि के दल के ।-गंग उदा० स्रम कुम्हिलानी बिललानी बन बन डोलैं मोकुल-वि० [सं. मदगलित] मदोन्मत्त, मद मैगलगवन मुगलानी मुगलन की। युक्त । -भूषण उदा० गोकुल मैं कोकुल न मोकल सनि गावै. मैजलि-संज्ञा, स्त्री० [अ० मंजिल] १. पड़ाव कोकिल कलापिन प्रलाप पिक बैनी के। मंजिल २. यात्रा, सफर। -देव उदा० पास उर धरे परे पायन पसारि घरै, मोच--संज्ञा, पु० [सं० मोचन मुक्ति, छुटकारा, मैजलि समाइ सोइ गये कैसे मन के। मोचन, समाप्ति । --बेनी प्रवीन उदा० मोचु पंच बान को भरोच अभिमान को ये मैंन-संज्ञा, पु० [हिं०मायन], मायन, विवाह में __ सोच पतिप्राण को सकोच सखियन को। होने वाला मातृ एवं पितृ पूजन। --देव उदा० नीकी अगवानी होत सूख जनबासौ सब मोजरि--संज्ञा, पु० [राज.] जूता, पदत्राण । सजी तेल ताई चैन मैंन मयमंत है। उदा० जरीस जोंति जा मयं, दिपंत कंठ दामयं, -सेनापति } प्रसंसि पाइ मोजरी, जराउ हेम संजुरी। मैन-संज्ञा, पु० [सं.] . मोम ०. कामदेव । -मान कवि उदा० १. सेज मैन सारी सी है सारी हूँ बिसारी मोजी-संज्ञा, स्त्री० [राज० मोजरि] जूती, सी है। मालम पदत्राण । मैनसारी-संज्ञा, स्त्री० [सं० मदन+सारि= उदा० मोजी सिये जरदोजी बुटीन उरोज उठे गोट] मोम की बनी हुई गोट या पासा। अठिलात सकोचनि । -देव उदा० सेज मैन सारी सी है सारी हूँ बिसारी सी मोत--संज्ञा, स्त्री॰ [सं० मूत] मोटरी, गठरी । है। विरह बिलाति जाति तारे की सी लीक | उदा० जज्ञ कर्म बिनु कर्म जो जगबंधन ते होत । For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy