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मोदधि
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तिन कार्जे कर्मन करौ मेटि फलन को मोत ॥ - जसवन्त सिंह मोदधि-- संज्ञा, पु० [सं० महोदधि ] महोदधि,
महासागर |
उदा० गंग कहै ऐसे गज बकसत घरी घरी, जैसे गज मोदधि मथेई पाइयत हैं गंग मोना- क्रि० स० [हिं० मोयन ] १. तल्लीन डुबाना, मोहित करना,
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करना, पागना, २. भिगोना । उदा० कुटिल कुराही कूर कलही कलंकी कलिकाल की कथान मे रहे जे मति मोइ कै । - पद्माकर
मोसन - सं० पु० [फा० मुसिन] चतुर, अनुभवी ता पीछे सवार सूर केसव सब मोसन । — केसवदास त्यागना,
मौकना — क्रि० सं ० छोड़ना । उदा० बीर रघुनन्दन को
[सं० मुक्त]
मौको न सीत लंक सहित पयोधि पार
हुकुम नाँती, ले धरौं । - सोमनाथ
यचा - संज्ञा, स्त्री० [फा० जच्चः ] प्रसूता स्त्री, वह स्त्री जिसे हाल में बच्चा पैदा हुआ हो । उदा० बंचति न काहू लचि रंच तिरछाइ डीठि संचति सुजसु यचा संचति के सोहरे ।
- देव यरक्की - संज्ञा, पु० [फा० एराक़ी ] श्ररब देश का घोड़ा, ताजी ।
उदा० घूंघट यरक्की तरुनाइयो थिरक्की पाइ रूप की तरक्की सब सौतिन करक्की है ।
यानो - वि० [सं० ज्ञान] ज्ञानवान, ज्ञानी ।
तोष
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येपै
मौज-संज्ञा, स्त्री० [अ०] पुरस्कार, बकशीश, इनाम, २. तरंग, लहर, ३. प्रानन्द ।
उदा० १ रहति न रन जैसाह मुख लखि लाखन की फौज । जाँचि निराखर हू चलें ले लाखन की मौज । बिहारी भूषन मिच्छुक मोरन को प्रति जोजहु तें बढ़ि मौजनि सार्ज । -- भूषण
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-प्रालम
मौड़ी - - संज्ञा, स्त्री० [देश० ] लड़की । उदा० कान्ह सों पिछौड़ी है कि कान्ह की कनौडी है कि, मौड़ी है जु डरपी के छल प्रति छाई है । मोरना - क्रि० सं० [हिं० मौर + फूलना, बौरना । उदा० एड़ी अनार सी मौरि रही, चंपे की डार नवाऊँ । मौरसिरी - संज्ञा, स्त्री० [स० १. मौलश्री नामक एक पुष्प, २ [वि० सिरमौर ] । उदा० मौरसिरी हो को पैन्हि के हार भई सब के शिर मौरसिरी तू । --देव
न ( प्रत्य० ) ] बहियाँ दोउ - रसखानि मौलकी ] शिरोमणि
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उदा० बाहर मूढ़ सु अंतस यानो । ताकहँ जीवन मुक्त बखानो । —केशव याल – संज्ञा, पु [ फा अयाल ] घोड़े, सिंह श्रादि के गरदन पर के बाल । उदा० यालनि जटित मंजु मुकता हैं ।
चन्द्रशेखर
येपै - श्रव्य० [सं० एषा + अपि ] इस पर, तथापि, फिर भी ।
उदा० येपै कर मेरो तेरी बलया बिची में धँसि पूजि कुच शंभु प्रास पुजई घनेरी है ।
-ग्वाला
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