Book Title: Ritikavya Shabdakosh
Author(s): Kishorilal
Publisher: Smruti Prakashan
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आहे ना होगा।
परी पोपी भाग्य ल्याय कोक की रहनु भो ।
रसमि
रोन उदा० बीच उखारी रसभरा, रसकाहे ना होय ।। घरी पोथी प्राय ल्याय कोक की रहल मैं । -रहीम
-रघुनाथ रसमि-संज्ञा, स्त्री० [सं० रश्मि] १. चमक, रहसि-संज्ञा, पु० [सं० रहस्] हर्ष, आनन्द, प्राभा, प्रकाश २. किरण ।
प्रसन्नता, २, एकान्त स्थान [सं०] । उदा०ाबसन सफेद स्वच्छ पेन्हे प्राभूषण सब उदा. १. कामिनी कमलननी कर न रहसि हीरन को मोतिन को रसमि अछेव को ।
केलि, कमला बिसारिनी बिसेष बामैं दयो -- रघुनाथ
--गंग रसहाल-वि० [सं० रस+फा० हाल] खुशहाल
रहावन--संज्ञा, पु० [बु.] गायों के एकत्र करने सुखी, प्रसन्न ।
का स्थान । उदा० नैकु चितौति नहीं चितु दे, रसहाल किये
उदा० कान्ह कुंवर सब सखन संग मिलि ठाढ़े जुरे हूँ हियेहू न खोले ।
-देव रहावन ।
--बकसी हंसराज रसही-क्रि० वि० [हिं० रसना] धीरे-धीरे, शनैः ।
रॉज-संज्ञा पु० [सं रंजन] रंजन, कज्जल मादि शनैः ।
लगाने का कार्य । उदा० करबीरी देत करकर उठी रसही।
-आलम
उदा० काछ नयौ इकतौ बर जेउर दीठि जसोमति
रांज करयौ री।। रसाना-क्रि० प्र० [सं० रसना] पृथक् होना,
-रसखानि अलग होना, उदासीन होना।
राइमुनी संज्ञा, पु० [हिं० रइमुनिया] एक छोटा उदा० कहै कबि गंग और औरऊ जू पाक बाक
पक्षी, रहमुनिया। कहत कहत क्योंहू क्योंहूँ न रसाति है।
उदा० राधिकै राइमुनीहि सी कान्ह अचानक -गंग पानि सचान सो लैगो ।
-तोष रसौ-संज्ञा, स्त्री० [सं० रसा] रसा, पृथ्वी। राई संज्ञा, स्त्री० [सं० राज्य] राज्य, राजत्व । उदा० दांब दरेर तरेर अरे, रसौ घेरति आवति
उदा०--मेरुसुमेरु लगै सरसो सम, राई समान घोर घटाई ।
---.देव सुरेस की राई ।
--देव रहचट-संज्ञा, स्त्री० [हिं० रस+चाट] रस की
राघवनिसि-संज्ञा स्त्री० [सं० राघव - राम+ चाट, लालच, प्रबल अभिलाषा।
निसि=रात्रि] राघव क. रात्रि, रामनवमी उदा० १. झमकि झमकि टहलै करै लगी रहचट उदा० पुन्य बिलात पहारन से पल ज्यों अघ बाल ।
-बिहारी राघव की निसि जागे।
-केशव २. रूप रहच लगि लग्यो मांगन सब राछ-संज्ञा, स्त्री [बुं०] बरात, जुलूस । जग पानि ।
-- बिहारी
उदा० चित चौंडेल चढ़ाय लडिलरी तानपुर राछ रहचर- संज्ञा, पु० [देश॰] राह चलने वाले,
फिराई।
-बकसी सिह राज पथिक ।
फिरी राछ लीलावति की जबहो। मांवर सुघरी उदा० कूदत न मृगज चनक मूंदै साखामृग पास
प्राई तबहीं।
-बोधा दृग बूंद बरसत रोझ रहचर ।
राजराज संज्ञा, पु० [सं०] १. कुबेर २. बड़े
-देव राजा, श्रेष्ठ क्षत्रिय । रहठानि . संज्ञा, पु० [हिं० रह-रहना+ठानि
उदा० १. कविकुल विद्याधर सकल कलाधर राज+ठांव, स्थान] बसेरा, रहने का स्थान, वास
राज बरवेष बने।
-केशव स्थान।
राती परी-संज्ञा, स्त्री० [सं० रक्त-लाल+ उदा० कुंजनि में रहठानि करी है नई हरि सौं फा० परी=अप्सरा, बधू] बीरबधूटी, बरसाती पहिचानि करी है ।
-सोमनाथ लाल कीड़ा। मिस ठानि चलै रसिया रहठानि त्यों पानि उदा. राती परी बरषे ठिगारी उड़ धुवांधार भटू अँखियान परै ।
- घनानंद
ऐसी भांति भादौं प्राली मोरही तें मोध्यौ रहल-संज्ञा, स्त्री० [अ०] पुस्तक रखने की
-गंग काष्ठ की छोटी चौको।
| रान-संज्ञा, स्त्री० [फा०] जाँघ, जंघा । उदा० रघुनाथ भावते को पानदान भरी धरी- उदा० गोला से गयंदन के गोल खोलिबे में झिले,
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