________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दुहेली ( १२८ )
दोन दहेली--वि० सं० दुहेल] कठिन, मुश्किल ।
की छबि छोटी।
-बोधा उदा० धरी ही में देहली दुहेली भई घर तें। देवाल कहकह-संज्ञा, स्त्री० [फा० दीवारे
-आलम क़ह कहः] चीन की एक दीवार, जिसके संबंध वृंदना - क्रि० स० [हिं० दौंदना] सं० द्वंद्व, दुख । में कहा जाता है कि जो इसमें से झाँकता है देना, परेशान करना ।
वह अनायास खूब हँसता है। उदा. ग्वाल कवि बूंदें ढूँदें रूँदें बिरहीन हीन, उदा० बार बार बरजौं बिलोकै जनि जाइ कोई नेह की नमूद ये न मूंदें है गमाके सों, कारो दईमारो हाइ है देवाल कहकह । -ग्वाल
--तोष दूकनि वि० [सं० द्वि ] दो-दो ।
| वैना-संज्ञा, पु० [हि० दहिनावतं] परिक्रमा, कवि देव घटा उनई जु नई बन भूमि दल दूकनि किसी वस्तु के चारों तरफ चक्कर लगाना । सों।
-देव उदा० कोऊ दना देत परस्पर कोऊ दिनरी गावै । दूखना-क्रि० स० [सं० दूषण] दोष निकालना,
- बकसी हंसराज दोष देना, आलोचना करना निन्दा करना। दोचन-संज्ञा, स्त्री० [हिं० दबोचन] दबाव, २. उदा. का कहिये इन सों सजनी मकरन्दहि-लेत दुवधा ३. कष्ट, पीड़ा, दुख । मलिन्दहि दुखतीं ।
-प्रतापसाहि उदा० १. बरजोरी पिया यह गोरी सबै, गहिदूनर - वि० [सं० द्विगुणित, हिं० दूना] दुगुनी, ल्याई गोबिन्दहि दोचन सों।। दुहरी।
-बेनी प्रवीन उदा० दंतनि अधर दाबि दूनर भई सी चापि,
३. परि पीरी गई कहि बेनी प्रवीन रहै चौपर पचौमर के चूनर निचोर है।
निसि बासर दोचति सी। -बेनी प्रवीन
-पद्माकर दोत - संज्ञा, स्त्री० [हिं० दवात, अ० दावात] दूनरिया-संज्ञा, पु. [ हिं• दुनौना ] नमन, मसि-पात्र, दावात, स्याही रखने का पात्र । झुकाव ।
उदा० कहै 'पद्माकर सुनौ तौ हाल हामी भरी उदा० लखि ते हरि काहे संभारि उठी न मई कच लिखौ कही लैक कहूँ कागद कलम दोत । भारन दूनरिया । - बेनीप्रवीन
पदमाकर दूभर- वि० [सं० दुर्भर] कठिन, मुश्किल । दोष-- संज्ञा, पु० [सं०] १. अंधकार, अँधेरा उदा० डीठि-विष डासी ह विसासी विषधर २. त्रुटि । स्याम सेवत सुधा ही देव दूभर दुधा भरे । । उदा० १. राखति न दोष पोष पिंगल के लच्छन
-देव
कौं बुध कवि के जो उपकंठ ही बसति है । दूषक-संज्ञा, पु० [सं०] १ शत्रु, दुश्मन २.
-सेनापति दोष लगाने वाला।
उघरहिं विमल विलोचन ही के । मिटहिं उदा० १. फुकरत मूषक को दूषक भुजंग, तासो
दोष-दुख भव रजनी के।
-तुलसी जंग करिबे को झकयो मोर हद हला मैं। दोहन-संज्ञा, पु० [सं०] १. दुहना, निकालना,
-भूधर २. समाप्त करना। देव-संज्ञा, पु० [फा०] १. राक्षस, एक नरभक्षी | उदा---ढिग बैठे हू पैठि रहै उर मैं घर के दुख प्राणी २. देवता [सं.]।
__ को सुख दोहत है।
' घनानन्द १.देस दहपट्टि आयो मागरे दिली के मेंडे बरगी वौंबना क्रि० स [अव ] १. रति क्रीड़ा में बहरि मानौ दल जिमि देवा को। -भूषण ऊधम करना, दबाना २. कुचलना, नष्ट देवता-संज्ञा, स्त्री० [सं०] देवी, देवाङ्गना।
करना । उदा० तहँ एक फूलन के विभूषन एक मोतिन के उदा० . गाय उठी अति रूठी बाला । ज्यौंकिये, जनु छोर सागर देवता तन छीर
माधोनल दौंदि खुसाला ।
- बोधा छीटनि को छिये ।।
-केशव | बौन-संज्ञा, पु० [सं० दमन] १. दमन, दबाने देव दुआर-संज्ञा, पु० [सं० देव+द्वार] मंदिर, की क्रिया . दोनों [वि.] । देव स्थान ।
उदा० अंगना अनंग की सी पहिर सुरंग सारी, उदा० देव दुआरे निहारि खड़ी मृग नैनी कर रबि । तरल तुरंग मग चाल दुग दौन की। -देव
For Private and Personal Use Only