Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 13
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी .......... एक परिचय रत्नकरण्ड श्रावकाचार ग्रन्थ के कर्ता आचार्य श्री समन्तभद्रस्वामी हैं। प्रतिभाशाली आचार्यों, समर्थ विद्वानों एवं पूज्य महात्माओं में आपका स्थान बहुत ऊंचा है। आप समन्तातभद्र थे – बाहर भीतर सब ओर से भद्र रूप थे। आप बहुत बड़े योगी, त्यागी, तपस्वी एवं तत्त्व ज्ञानी थे। आप जैन धर्म एवं सिद्धान्तों के मर्मज्ञ होने के साथ ही साथ तर्क, व्याकरण छन्द अलंकार और काव्य-कोषादि ग्रन्थों में पूरी तरह निष्णात थे। आपको 'स्वामी' पद से खास तौर पर विभूषित किया गया है। आप वास्तव में विद्वानों, योगियों त्यागी-तपस्वियों के स्वामी थे। जीवनकाल : आपने किस समय इस धरा को सुशोभित किया इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। कोई विद्वान आपको ईसा की तीसरी शताब्दी के बाद का बताते हैं तो कोई ईसा की सातवीं आठवीं शताब्दी का बताते हैं। इस सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ स्वर्गीय पंडित जुगल किशोर जी मुख्तार ने अपने विस्तृत लेखों में अनेकों प्रमाण देकर यह स्पष्ट किया है कि स्वामी समन्तभद्र तत्वार्थ सूत्र के कर्ता आचार्य उमास्वामी के पश्चात् एवं पूज्य पाद स्वामी के पूर्व हुए है। अत: आप असन्दिग्ध रूप से विक्रम की दूसरी-तीसरी शताब्दी के महान विद्वान थे। अभी आपके सम्बन्ध में यही विचार सर्वमान्य माना जा रहा है। जन्म स्थान : पितृ कुल गुरुकुल - संसार की मोहमता से दूर रहनेवाले अधिकांश जैनाचार्यों के मातापिता तथा जन्म स्थान आदि का कुछ भी प्रमाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है। समन्तभद्र स्वामी भी इसके अपवाद नहीं हैं। श्रवणबेलगोला के विद्वान श्री दोर्बलिजिनदास शास्त्री के शास्त्र भंडार में सुरक्षित आप्तमीमांसा की एक प्राचीन ताडपत्रीय प्रति के निम्नांकित पुष्प का वाक्य “इति श्री फणिमंडलालंकार स्योरगपुराधिपसूनो: श्री स्वामी समन्तभद्र मुनेः कृतौ आप्तमीमांसायाम्" से स्पष्ट है कि समन्तभद्र फणिमंडलान्तर्गत उरगपुर के राजा के पुत्र थे। इसके आधार पर उरगपुर आपकी जन्म भूमि अथवा बाल क्रीडा भूमि होती है। यह उरगपुर ही वर्तमान का “ उरैयूर" जान पड़ता है। उरगपुर चोल राजाओं की प्राचीन राजधानी रही है। पुरानी त्रिचनापल्ली भी इसी को कहते हैं। आपके माता-पिता के नाम के बारे में कोई पता नहीं चलता है। आपका प्रारंभिक नाम शान्ति वर्मा था। दीक्षा के पहिले आपकी शिक्षा या तो उरैयूर में ही हुई अथवा कांची या मदुरा में हुई जान पड़ती है क्योंकि ये तीनों ही स्थान उस समय दक्षिण भारत में विद्या के मुख्य केन्द्र थे। इन सब स्थानों में उस समय जैनियों के अच्छे अच्छे मठ भी मौजूद थे। आपकी दीक्षा का स्थान कांची या उसके आसपास कोई गांव होना चाहिये। आप कांची के दिगम्बर साधु थे “कांच्या नग्नाटकोऽहं “। पितृ कुल की तरह समन्तभद्रस्वामी के गुरुकुल का भी कोई स्पष्ट लेख नहीं मिलता है। और न ही आपके दीक्षा गुरू के नाम का ही पता चल पाया है। आप मूलसंघ के प्रधान आचार्य थे। “इतिहास ग्रंथ” १. देखो स्व. श्री जुगलकिशोर मुख्तारलिखित स्वामी समन्तभद्र Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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