Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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" इकतालीस )
६० खूनड़ी. ज्ञान खूनडो भावि (६७०८)
चूनडी एवं ज्ञान चूनही पद संग्रह, नेमि व्याह पच्चीसी, बारहखड़ी एवं शारदा लक्ष्मी संवाद प्रदि सभी रचनायें बेगराज कवि की हैं। कवि १६ वीं शताब्दी के थे ।
६१ मेमिनाथ को छन्द (६६२२)
'नेमिनाथ को छंद' कृति हेमचन्द्र की है जो श्रोभूषण के शिष्य थे। इसमें नेमिनाथ का जीवन चित्रित किया गया है। राव विभक्त छन्दको भाषा संस्कृत निष्ठ है लेकिन वह सरल एवं सामान्य है । इसकी पथ संख्या २०५ है । रचना प्रकाशन होने योग्य है।
८ शालिभद्ररास (६६७८)
यह धावक फकीर की रचना है जो वधेरवाल जाति के खंडीय्या गोत्र के श्रावक थे। इसका रचना 'काल संवत् १७४३ है १ रास की पद्य संख्या २२१ है । रचना काल निम्न प्रकार दिग्रा सा है
1
f
ग्रहो संवत् समरासै मास बैसाख पूरि जोग नीखतर सब भल्या मिल्या
पूरणवास रखते अनरण
अहो सगली मन की पूगजी प्रास सालिभद्र गुप चरणउ ।।२२१||
वरस
सोशल । प्रतिपाल । गुडामभी।
राजई ।
८६- मुराष्ठागा गोल (६६८३)
गुणठाणा गीत ( गुणस्थान गीत ) बा बर्द्धन की कृति है जो शोभाचन्द सूरि के शिष्य थे । गीत बहुत छोटा है और १७ छन्दों में ही समाप्त हो जाता है। इसमें गुरणस्थान के बारे में अच्छा प्रकाश डाला गया है। भाषा राजस्थानी है ।
६२ पद (६६३६)
यह एक मुसलिम कवि की रखता है जिसमें नेमिनाथ का गुणानुवाद किया गया है। नेमिनाथ के atre पर किसी मुसलिम कवि द्वारा यह प्रथम पद है । कवि नेमिनाथ के जीवन से परिचित ही नहीं था किन्तु बह उनका मक्त भी था। जैसा कि पद की निम्न पंक्ति से जाना जा सकता है -
छपन कोटि जादो तुम सीन लोक तेरी खान मुहम्मद करत राखिने शरण
मुकुट मनि ।
करत
सेवा |
ही बीनती । देवाभिदेवा || ६ |