Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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( पचालीस )
संस्कृत भाषा में सबसे अधिक रचनायें स्तोष एवं पूजा सम्बन्धी हैं। बाकी रचनायें वही सामान्य हैं। समयसार पर संस्कृत भाषा की जो तीन संस्कृत टीकाएं उपलब्ध हई है और जिनका ऊपर परिचय भी दिया जा चुका है वे महत्त्वपूर्ण है। कन स पन. चार जी की प्रामा दुई हैं। वस्तुतः अब तक जो हिन्दी जैन माहित्य प्रकाश में आया है वह तो ग्रय सूची में वाणा साहित्य का एक भाम है। अभी तो संकड़ो ऐसी रचनाय हैं जिनका विद्वानों को परिचय भी प्राप्त नहीं हुआ है और जो हिन्दी की महत्वपूर्ण रचनायें हैं। संकड़ों की संख्या में गीत मिले हैं जो गुटकों में संग्रहीत हैं। इन गीतों में नेमि राजुल गीत पर्याप्त संख्या में हैं। इनके अतिरिक्त हिन्दी की अन्य विधाओं की भी रचनायें उपलब्ध हुई हैं वास्तव में जैन विद्वानों ने काव्य के विभिन्न रूपों में अपनी रचनायें प्रस्तुत करके अपनी विद्वत्ता का ही प्रदर्शन नहीं किया किन्तु हिन्दी को भी जनप्रिय बनाने में अत्यधिक योग दिया।
य सूची के इस विशालकाय भाग में बीस हजार पाण्डुलिपियों के परिचय में यदि कहीं कोई कमी रह गयी हो अथवा लेखक का नाम रचनाकाल प्रादि देने में कोई गल्ती हो गयी हो तो विद्वान उन्हें हमें सूचित करने का कष्ट करेंगे । जिससे मविष्य के लिये उन पर ध्यान रखा जा सके। शास्त्र भण्डारों के परिचय हमने उनकी सूची बनाते समय लिया था उसी प्राधार पर इस सूची में परिचय दिया गया है। हमने समी पाण्डसिपियों का अधिक से अधिक परिचय देने का प्रयास किया है। सभी महत्वपूर्ण संथ एक लेखक प्रशस्तियां भी दे दी गयी है जिनकी संख्या एक हजार से कम नहीं होगी। इन प्रशास्तियों के आधार पर साहित्य एवं इतिहास के कितने ही नये तथ्य उद्घाटित हो सकेंगे तथा राजस्थान के कितने ही विद्वानों, थावकों एजशासकों के बम्बाव में नवीन जानकारी मिल भ केगी।
राजस्थान के विभिन्न नगरों एवं ग्रामों में स्थापित कुछ भण्डारों को छोड़कर शेष की स्थिति अच्छी नहीं है और यही स्थिति रही तो थोड़े ही वर्षों में इन पाण्डुलिपियों का नष्ट होने का भय है। इन भण्डारों के व्यवस्थापकों को चाहिये कि वे इन्हें व्यवस्थित करके वेष्टनों में बांधकर विराजमान कर दें जिससे वे भविष्य में खराब भी नहीं हों और समय २ पर उनका उपयोग भी होता रहे।
महावीर भवन
जयपुर दिनांक २५-१२-७१
कस्तूरबग्द कासलीवाल अनुपचन्द न्यायतीर्थ