Book Title: Rajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 7
________________ भूमिका डा० कालीदार को यह एक और नयी देन हमारे समक्ष है । डा० कासलीबाल का प्रयत्न यही रहा है कि अज्ञात कोनों में से प्राचीन से प्राचीन सामग्री एवं परम्पराओं का अन्वेषण कर प्रकाश में लायें। यह ग्रन्थ भी इनकी इसी प्रवृत्ति का सुफल है । संतों की एक दीर्घ परम्परा हमें मिलती है। इस परम्परा की विकास श्रृङ्खला को बताते हुए डा० राम खेलावन पांडे ने यह लिखा है "संत-साधनधारा सिद्धों-नाथों निरंजन-पंथियों से प्राण पाती हुई, नामदेव, त्रिलोचन, पीपा और पन्ना से प्रेरणा लेती हुई कबीर, रैदास, नानक, दादू, सुन्दर, पलटू श्रादि अनेक संतों में प्रकट हुई । " इस परम्परा में पारिभाषिक 'संत' सम्प्रदाय का उल्लेख है। इसमें हमें किसी जैन संत का उल्लेख नहीं मिलता । पर डा० पांडे ने आगे जहां यह बताया है कि "कबीर मंसूर में आद्याशक्ति और निरंजन पर जीत की कथा विस्तार पूर्वक दो हुई है, अतः सिद्ध होता है कि कुछ शाक्त और निरंजन पंथी कबीर पंथ में दीक्षित हुए ।..... निरंजन पंथ का इतिहास यह संकेत देता है कि इसके विभिन्न दल क्रमशः गोरख पंथ, कबीर पंथ, दादूपंथ में अन्तर्भूत होते रहे और सम्प्रदाय में इसकी शाखाए' भिन्न बनी रहीं। कबीर मंगूर में मूल निरंजन पंथ को कबीर पंथ की बारह शाखाओं में गिना गया है यही पाद टिप्पणी स० ३ में पांडे ने एक सार गमित संकेत किया है :. "निरंजन का तिब्बती रूप ( 905 Pamed ) नामक निन्य है । इसके आधार पर निरंजन पंथ का सम्बन्ध जैन मतवाद से जोड़ा जा सकता है, काल Perver १. मध्यकालीन संत साहित्य-पृष्ठ- १७ २. बही पृ० ५७ VPLS

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