Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ Assessmanasamastians ४५१ SSSSSSS २३२ मोक्षमार्गके मूलसाधन भूत आगममें व्यापार ४३६ करनेका विधान २३३ आगमहीनके कर्मक्षय की असंभवता ४४२ २५४ शुभोपयोगका गौण-मुख्य विभाग २३४ मोक्षमार्ग पर चलनेवालों की आगम चक्षुपता४४५२५५ भोपयोगके कारण की विपरीततासेलकी २३५ आगमचक्षसे सब कुछ दिखाई देता ही है ४४७ विपरीताका प्रदर्शन ४८४ २३६ आगमज्ञान, तत्पूर्वक तत्त्वार्थश्रद्धान और २५४ शभोपयोगकै अविपरीत फलका कारण भूत तदुभयपूर्वक संयतत्वके एक साथ होने में मोक्ष अविपरीत कारण मार्गत्व होने का नियम २६१ अविपरीत फलका कारणभूत अविपरीत २२७ आगमज्ञान तत्वार्थथद्धान और सयतत्वकी कारण की उपासनारूप प्रवृत्ति सामान्य-विशेषअयोगपद्य में मोक्षमार्गत्व नहीं तया करने योग्य है २३८ आगमज्ञान-तत्वार्थश्रद्धान-संयतत्त्व के युगपत २६३ श्रमणाभासों के प्रति समस्त प्रवत्तियों का होनेपर भी, आत्मज्ञानमें मोक्षमार्गको निषेध साधकतमताका द्योतन २६५ श्रमणाभासका परिचय २३६ आत्मज्ञानशून्यके सर्व आगमज्ञान, तत्वार्थ २६५ श्रामण्य से समान श्रमणों का अनुमोदन न करने श्रद्धान तथा संयतत्वकी युगपत्ताको भी वालेका विनाश अकिचित्करताका निरूपण २६६ श्रामण्य से अधिक श्रमणोंके प्रति श्रामण्य में २४० आगमज्ञान तत्वार्थश्रद्धान-संयतत्व और होन की तरह आचरण करने वालेका विनाश आत्मज्ञान के एक साथ होने में संयतपना २६७ जो श्रमण श्रामण्यमें अधिक हो वह अपने से २४१ वास्तविक संयतका लक्षण हीन श्रमणके प्रति, समान जैसा २४२ उक्त चारोंके योगपद्यमें प्राप्त एकाग्रगतताका आचरण करे तो उसका विनाश मोक्षमार्गरूपसे समर्थन २६८ असत्सग निषेध्य है २४३ अनेकाग्रताके मोक्षमार्गत्व घटित नहीं होता ४६४ २६६ लौकिक जन का लक्षण ४४ एकाग्रताके मोक्षमार्गत्वका अवधारण २७० सत्संग करने योग्य है २४५ शुभोपयोगियोंकी श्रमणरूप में गौणता २७१ संसार तत्व २४६ शुभोपयोगी श्रमणोंका लक्षण २७२ मोक्ष तत्व २४७ शुभोपयोगी श्रमणोंकी प्रवृत्ति ४७१ २४६ सभी प्रवृत्तियां शुभोपयोगियोंके ही होती है ४७४ २७३ मोक्षतत्वका साधनतत्व ५०६ २५० संयमको विरोधी प्रवृत्ति होने का निषेध २७४ मोक्षतत्व के साधन तत्वका सर्वमनोरथ के स्थानके रूप में अभिनन्दन २५१ प्रवृत्तिके विषयके दो विभाग २५२ प्रवृत्तिके कालका विभाग ४७८ २७५ शिष्यजनको शास्त्र के फल के साथ जोड़ते हुए २५३ श्रमणोंको वैयावृत्यके निमित्त ही लोकसंभाषण शास्त्रका समापन ५०१ or S 21 ad -

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