Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 5
________________ -eurs ४०१ ३५८ १८। कीवकी स्वद्रव्य में प्रवत्तिका निमित्त और २०७ अन्तरङ्ग बहिरङ्ग लिङ्गोंको ग्रहण कर परद्रव्य में प्रवत्तिका निमित्त स्वपरके श्रामण्यप्राप्ति के लिये और क्या क्या होता विभागका ज्ञान व अज्ञान है १८४ आत्माका कर्म क्या है इसका निरूपण ३४५ २०८ अविच्छिन्न सामायिक में आरूढ़ हुआ भी श्रमण १८५ 'पूदगल परिणाम आत्माका कर्म क्यों नहीं कदाचित् छेदोपस्थापनाके योग्य है है ?' इस संदेहका दूरीकरण २१० दीक्षागुरु व निर्यापक गुरु का निर्देश १८६ पुदगल कोके द्वारा आत्मा कसे ग्रहण किया २११ छिन्नसयमके प्रतिसंधानको विधि जाता है और छोड़ा जाता है ? इसका २१३ श्रामण्यके छेदका आयतन होने से परद्रव्यनिरूपण प्रतिबन्धका परिहार कर निर्दोषप्रवृत्तिका १८७ पद्गलकर्मोकी विचित्रताको कौन करता है ? विधान इसका निरूपण २१४ धामण्यकी परिपूर्णताका आयतन होनेसे ३५० स्वद्रव्य में ही प्रवर्तने की विधेयता १८८ अकेला ही आत्मा बन्ध है इसका प्ररूपण ४०३ ३५२ २१५ श्रामण्यके छेदका आयतन होने से यतिजना१८६ निश्चय और व्यवहारका अविरोध ३५४ सन्न सूक्ष्मपरद्रव्यप्रतिबन्धको भी निषेध्यता ४०४ १६० अशुद्ध नयसे अशुद्ध आत्माकी प्राप्ति २१६ छेद क्या है, इसका उपदेश ४०६ १६१ शुद्ध नयसे शुद्ध आत्माकी प्राप्ति २१७ छेदके अतरंग और बहिरंग दो प्रकार १६२ ध्रुवत्वके कारण शुद्धात्मा ही उपलब्धव्य है ३६० ४०८ २१८ सर्वथा अंतरंग छेद प्रतिषेध्य है ४०६ १६३ अध्र वपना होने स आत्मातिरिक्त अन्य उप २१६ उपधि अतरग छेदकी भांति त्याज्य है ४११ लब्धव्य नहीं २२० उपधिका निषेध अंतरंग छेदका ही निषेध है ४१३ १६४ शुद्धात्माकी उपलब्धिसे क्या होता है इसका २२२ किसीको कहीं कभी किसीप्रकारसे कोई एक वर्णन ३६४ उपधि अनिषिद्ध भी है १६५ मोहग्रंथि के टूटने से क्या होता है इसका वर्णन ३ २२३ अनिषिद्ध उपधिका स्वरूप ४१६ १६६ एकाग्रसचेतन रूप ध्यानकी आत्मरूपता ३६७ २२४ उत्सर्ग ही वस्तुधर्म है, अपवाद नहीं ४२० १६७ सकलज्ञानी क्या ध्याते हैं ? ऐसा प्रश्न ३६६ २२५ अपवादके विशेष १६८ उपरोक्त प्रश्न का उत्तर १०१ २२६ अनिषिद्ध शरीरमात्र उपधिके पालनकी १६६ मोक्षका मार्ग शुद्धात्मोपलम्भ है ३७३ विधि ४२४ २०० पूर्वप्रतिज्ञाका निर्वाह करते हुए, मोक्षमार्गभूत २२७ युक्ताहारविहारी साक्षात् अनाहारविहारी शुद्धात्मप्रवृत्तिका पौरुष ३७४ ४२६ ३-चरणानुयोगसूचिका चूलिका २२८ श्रमणके युक्ताहारित्वकी सिद्धि ४२८ २०१ दुःखोंसे मुक्त होने के लिये श्रामण्यको अंगी २२६ युक्ताहारका विस्तृत स्वरूप कार करने को प्रेरणा २३० उत्सर्ग और अपवाद की मैत्री द्वारा आचरण २०२ श्रमण होनेका इच्छुक क्या क्या करता है ३८१ की सुस्थितता २०५ यथाजातरूपधरत्वके बहिरंग और अंतरंग दो २३१ उत्सर्ग और अपवादके विरोधसे आचरण की लिंगोंका उपदेश दुःस्थितता ४२२ ३८८

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