Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

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Page 13
________________ karananaanaanaat ... है प्राककथन ... .. Peeeeeeeeử . . . आर्य देश आर्यों के वसवाट से आर्य कहा जाता है। धर्मों में भी जैन धर्म सर्व श्रेष्ट और सर्वज्ञ कथित सिद्ध हुआ है। विश्व के तमाम धर्मों में जो कुछ ग्रन्थ है वह जैन धर्म में से उनमें गया है । जैन शासन सागर है। जवकि अन्य धर्म आंशिक सत्यता धरातें हैं सव जैन शासन में से चला गया है ऐसा महा विद्वान और अनुभवी महापुरुषं बताते हैं । जैन दर्शन का आधारस्तम्भ जैनागम है। और उसमें दर्शाये हुए द्रव्यानुयोग के, गणितानुयोग के चरण करणानुयोग के और कथानुयोग के विषय...... ये अदभूत, गहन और तत्व बोधक हैं । श्री तीर्थकर देवों ने अर्थ स्वरूप देशना में से निपुण गणधर भगवंतों ने सूत्र रुप और तत्वों को प्रासादिक और आकर्षक भाषा में गूंथी वही वाणी मुनिगण ऋषभों ने स्वक्षयो पशमानुसार स्मृति में जड़ के परम्परा से आज तक पंचम विषमकाल में अपने सम्मुख लाई गई है। .. ' आज जो कोई सुविहित और गीतार्थ श्रमण वोल रहे हैं वे. सब जिन कथित तत्वों की ही रसपूर्ण मीठी ल्याण हैं । अनादिकाल से संसार में डूबते प्राणीयों को तिराने का पवित्र साधन हैं तो ये जिनागम ही हैं और उनके तत्व हैं । अन्य अनर्थ है। सार तो 'जिंन वचन है । अन्य सर्व अंसार हैं । और इन पंचनों का अमल यही मंगल मीक्षं मार्ग चारित्र है । . . .

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