Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्लोकों में 'छत्रादिषु विशेषेण मुक्तं मां विद्धि तत्त्वतः' तथा 'जनकोऽप्युत्स्मयन् राजा भावमस्या विशेषयन्' कहकर जनक एवं संन्यासिनी के मध्य प्रचलित दार्शनिक प्रसङ्ग में 'विशेष' शब्द साभिप्राय रखा गया है। विद्वज्जनों को इस पर विचार करना चाहिए कि उक्त प्रसङ्ग में विशेष' शब्द को लेकर जिस दर्शन पर विचार किया गया है, क्या वह कणाद प्रणीत वैशेषिक दर्शन है अथवा सांख्यदर्शन । 'ऋतूक्थादिसूत्रान्ताक्' (४-२-६०) सूत्र के गणपाठ में पाणिनि ने 'न्याय, उक्थ, लोकायत, ज्योतिष, संहिता, निरुक्त, वृत्ति, आयुर्वेद' इत्यादि का उल्लेख किया है, 'विशेष' शब्द का नहीं । 'विनयादिभ्यष्ठक्' (५-४-३४ ) सूत्र के गणपाठ में यद्यपि 'विशेष' शब्द का पाठ हुआ है, तथापि उक्त सूत्र स्वार्थ में प्रत्यय-विधान करता है। 'विशेषमधिकृत्य कृते ग्रन्थे' इस अर्थ में 'अधिकृत्य कृते ग्रन्थे' (४-३-८७ ) सत्र से ठक् प्रत्यय होकर 'वैशेषिक' शब्द निष्पन्न होता है। यद्यपि इस प्रकार पर्यालोचना करने पर ज्ञात होता है कि पाणिनि को 'वैशेषिक दर्शन' अज्ञात था, तथापि पाणिनि के 'परेरभितोभावि मण्डलम्' (१,२,१८२) सूत्र में 'परिमण्डल' शब्द वैशेषिक दर्शन के नित्यं परिमण्डलम्' ७,२,२०) सूत्र-गत परिमण्डल शब्द के सदृश परमाणुपरिमाण अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। वायुपुराण के महेश्वरावतारयोग नामक तेईसवें अध्याय में अक्षपाद, कणाद, उलक तथा वत्स को सोमशर्मा का पुत्र बताया गया है । छब्बीसवें परिवर्त में वैद्युत एवं आश्वलायन की उत्पत्ति तथा सत्ताइसवें परिवर्त में अक्षपाद, कणाद इत्यादि के जन्म का उल्लेख किया गया है। जातकर्ण्य व्यास के काल में सोमशर्मा की स्थिति प्रभासतीर्थ में बतायी गयी है । वह प्रभासपत्तन के नाम से गुजरात में अवस्थित है । पद्मपुराण ( उत्तरखण्ड ) के २६३वें अध्याय में दस ऋषियों को तामस कहा गया है। वे हैं-१. कणाद, २. गौतम, ३. शक्ति, ४. उपमन्यु, ५. जैमिनि, ६. कपिल, ७. दुर्वासा, ८. मृकण्डु, ६. बृहस्पति तथा १०. भृगुवंशोत्पन्न जमदग्नि । इन्हें भावशक्त्यावेशावतार बताया गया है। इनके द्वारा रचित शास्त्रों को वेदबाह्य तथा तामस कहा गया है ( २६३,६६-६८)-- शृणु देवि प्रवक्ष्यामि तामसानि यथाक्रमम् । येषां स्मरणमात्रेण पातित्यं ज्ञानिनामपि । प्रथमं हि मया चोक्तं शंबं पाशुपतादिकम् । मच्छक्त्यावेशितैविप्रैः प्रोक्तानि च ततः शृणु ॥ कणादेन तु संप्रोक्तं शास्त्रं वैशेषिकं महत् । गौतमेन तथा न्यायं सांख्यं तु कपिलेन वै ।। वायुपुराण के अनुसार जातूकण्यं व्यास सत्ताइसवें परिवर्त में तथा कृष्णद्वैपायन ध्यास अट्ठाइसवें परिवर्त में हुए थे। इस प्रकार पातुकर्ण्य व्यास के समय उत्पन्न सोमशर्मा के पुत्र कणाद वैपायन व्यास से पूर्ववर्ती ठहरते हैं । For Private And Personal

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