Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Atmaram Jain Model School

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Page 15
________________ [ + ] प्राकृत व्याकरण का मुद्रण हो रहा है, बहुत बड़ा प्रेस होने पर भी उस में इतनी अधिक व्यस्तता दृष्टिगोचर होती है कि इस समय भी द्वितीय खण्ड का प्रकाशित होना कठिन प्रतीत हो रहा था । तथापि यह सब कुछ जो हो गया है, यह भी प्रेस के मालिक श्री ऐस० एल० भाटिया जी का ही औदा समझता हूँ | कृतज्ञता प्रदर्शन ...... प्राकृत व्याकरण की संस्कृत-टोका तथा हिन्दी टीका लिखने में मूलरूप में सर्वाधिक श्रेय तो मेरे जीवन के निर्माता, हृदय सम्राट्, जैनधर्मदिवाकर पूज्यपाद, वन्दनीय प्राचार्यसम्राट् गुरुदेव पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज को ही दिया जा सकता है। क्योंकि उन्हीं के प्रदेश तथा मङ्गलमय | मैं यह पूज्य गुरुदेव आशीर्वाद से ही प्राकृत व्याकरण का यह विशाल विवेचन लिखा जा सका काही पुण्य प्रताप मानता हूं कि “श्रेयांसि बहुविघ्नानि" के सिद्धान्त के प्रभाव से मैं सर्वथा प्रता रहा। अतः सर्वप्रथम मैं जैनागमों के अद्वितीय विद्वान, चारित्रचूडामणि पूज्य गुरुदेव का हृदय से आभारी हूं । तदनन्तर अपने बड़े गुरुभाई श्रद्धेय पण्डित श्री हेमचन्द्र जी महाराज का भी प्राभारी हूं, जिनके समय-समय पर दिए गए सहयोग के कारण मैं बालमनोरमा संस्कृत टीका को परिमार्जित एवं परिवर्धित करने में सफल हो पाया हूँ । प्राकृत व्याकरण के चारों पादों के आरम्भ में तथा अन्त में जितने भी लोक दिए गए हैं, उनमें से कुछ एक श्लोकों को छोड़कर शेष समस्त श्लोक मेरे स्नेही मुनि आदरणीय पण्डित श्री राम प्रसाद जी के लिखे हुए हैं। मुनि श्री व्याख्यानवाचस्पति श्रद्धये श्री स्वामी भवन लाल जी महाराज के शिष्य- रत्न हैं। में इनको अपने छोटे भाई की भाँति मानता हूं । संस्कृत भाषा तथा प्रागमग्रन्थों की इनको इतनी अधिक जानकारी है कि कुछ कहते नहीं बनता। ये एक सुलझे हुए विद्वान एवं विचारक सन्त हैं । अपने छोटे भाई के इस सहयोग का भी धन्यवादी हूँ । प्राकृत व्याकरण के प्रथम खण्ड पर प्राचार्य प्रवर पूज्य श्री प्रानन्द ऋषि जी महाराज पण्डितप्रवर श्री हेमचन्द्र जी महाराज, उपाध्याय कविरत्न श्री अमर मुनि जी महाराज, उपाध्याय पण्डिल श्री फूलचन्द्र जी महाराज भ्रमण प्रादि पूज्य मुनिराजों तथा ग्रन्य विद्वानों ने अपने श्रभिमत प्रेषित करके मुझे जो प्रोत्साहित किया है, उसके लिए मैं उनका कृतज्ञ हूं, श्राभारी हूं । प्राकृत व्याकरण के प्रकाशन की सब व्यवस्था हमारे प्रिय श्रावक श्री सुखदेवराज जी जैन मोहरों वाले, अम्बाला शहर वाले कर रहे हैं । इन्होंने इस ग्रन्थ के प्रकाशन में अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग किया है, वह भी निष्काम भावना से । यदि संक्षेप में अपनी बात कह दूं तो -श्री सुखदेवराज जी का भक्तिपूर्ण मधुर सहयोग ही प्राकृत व्याकरण की रचना को साकार रूप प्रदान कर सका है। प्राकृत व्याकरण के प्रकाशन के निमित्त जिन दानी सज्जनों एवं उदार बहिनों ने सहयोग दिया है, उनका भी धन्यवादी हूं। मेरी लिखी पंक्तियों को प्रेस के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाने का मूल ग्राधार तो दानी सज्जनों का सहयोगही मानता हूं। मैं इन उदार महानुभावों का भी धन्यवादी हूं। प्रकाशक संस्था की ओर से भी इन दानी सज्जनों का नाम निर्देश-पूर्वक धन्यवाद इसी ग्रन्थ में अन्यत्र किया जा रहा है । प्राकृत व्याकरण के द्वितीय खण्ड के अन्त में परिशिष्ट के रूप में प्राकृत भाषा का जो धातुपाठ दिया गया है, यह भावनगर से प्रकाशित प्राकृत-व्याकरण (प्रष्टसाध्याय सूत्रपाठ ) से साभार

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