Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Narmadashankar Damodar Shastri
Publisher: Narmadashankar Damodar Shastri

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ मागधी व्याकरणम्. दनयोः वददितस्वरानौतः ऽनणनोव्यंजनी अनुस्वारः वर्तमाना ऐ तृतीयस्य मिएस्य निमिव्यंजनाऽहस्वः संयोगे था श्राद्यपाँ श्रनादौ हित्वं वैरादौ वा वैस्थाने व १ अमोऽस्यसूलुक् मोनु श्रजावरं दणुइंदस्यार्थः नपेंडः शोजते किंग दनुजेंअरुधिरलिप्तः पुनः किं० नखप्रजावलिअरुण श्व उत्प्रेक्षते संध्यावधूऽवगूढो नववारिधरः विद्युत्प्रनाजिन्नश्त्यर्थः गूढोदरतामरसानुसारिणीत्यर्थः अत्रे वर्णेवर्णयोरजावात् संधिः पृथिवीश उदृत्वादौ पृथुपथिपृथिवीप्रतिशून्मूषिकह रिअबिजीतकेष्वत् थिस्थाने धरवधपथह शषोःसः तसेर्जे पुहवीसो ॥६॥ टीका भाषांतर. न ११ युवर्ण ६१ अस्व ७१ ए त्रण पहनुं सूत्र. श्वर्ण अने छवर्ण ते युवर्ण कहेवाय, ते युवर्णने संधि न थाय, अस्वे एटले स्ववर्ण न होय त्यां. तेनुं उदाहरण आपे बे. संस्कृतमां नवेरिवर्गेऽपि अवकाशः तेनुं प्राकृत नवेरिवगोषिअवयासो एवं थाय , ते या प्रमाणे. न ते अव्ययनो लुकू थाय बे. प्राकृतमा वर्गु करीने श्रव्ययो संस्कृत नियमप्रमाणे सिद्ध प्राय . नहीं तो अदंचप्ता, सेझैः, इदुतदंतेषु, अक्लीबे सौ दीर्घः इत्यादि सूत्रोनी प्राप्ति थाय. वैरिवर्गे ए शब्दने औत्एत् ए सूत्रथी वै नो वे अयो, पनी सर्वत्रलुकूअनादौ ए सूत्रवडे बिर्लाव थयो, एटले वेरिवग्गेडेम्मिमिस्थानेडेए ए नियमथी डे करी ए थयो, अने डित्वपणानो नियम संस्कृतप्रमाणे लेवाथी वेरिवग्गे एवं रूप सिद्ध श्राय. अपि शब्द अव्यय होवाथी संस्कृतप्रमाणे सिख थाय ने, अथवा पदादपर्वाडिलुक ए नियमथी अनो लुक् थयो. पठी पोवः सूत्रथी नोवू थयो, एटले अपिनुं वि एवं रूप थाय. अघकाश शब्दने क म च सूत्रवडे कूनो लुकू थयो, अने अवर्णों ए सूत्र लागवाश्री अ नो यू अयो, पनी शषो सः सूत्रवडे शू नो सू थयो, पनी अतः से? ए नियम लागतां अवयासो एवं रूप सिद्ध थाय बे. अपि+अवकाश ए वाक्यमां आ नियमयी संधि न थाय. संस्कृत वंदामि आर्यवैरं तेनुं प्राकृत वंदामि अजवइरं एवं थाय . ते आप्रमाणे. वदि अभिवादन स्तुत्योः एटले वदि धातु वंदना करवी अने स्तुति करवी तेमा प्रवर्ते बे. वद् धातुने ओदितस्वरानौतः ठन्नणो व्यंजनी अनुस्वारः ए सूत्रोथी वंद एवं रूप थाय. पनी वर्तमाना ए सूत्रथी त्रीजा पुरुषमां ए सांगी तनो मि थयो, एटले वंदामि अयु. आर्यवैरं तेने व्यंजनाडदीअ इस्व: संयोगे ए सूत्रथी आ नो अ थयो, पनी आद्यपर्याजः सूत्रथी ये नो ज अयो, पळी अनादौ द्वित्वं ए नियमवडे अज थयु. वैरादौ वा ए सूत्रथी वै ने स्थाने वह अयुं, पी वितीयाना एकवचनने अमोऽस्यस्लुक ए सूत्र प्राप्त करी मोनुवार प्राप्त थइ अजवइरं एवं रूप सिघ थाय. संस्कृत दनुजेंद्ररुधिरलिप्सः तेनुं प्राकृत For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 477