Book Title: Prakrit Suktaratnamala
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 14
________________ प्राकृत-सूक्तरत्नमाला । प्राकृत-काव्यम् । Prakrita Poetry अमियं पाइय-कव्वं पढिउं सोउं च जे न जाणंति । कामस्स तत्त-वत्तं कुणंति ते कह न लज्जंति ? ॥ १ ॥ अमृतं प्राकृतकाव्यं पठितु श्रोतु च ये न जानन्ति । कामस्य वार्त्ता' कुर्व्वन्ति ते कथं न लजन्ते ? ॥ १ ॥ Nectar-like is Prákrita Kávya : how is it, that those who kuow not how to read or listen to it and yet hold discourse on the theory of love, are not ashamed? मुत्ता-हलंव कव्वं सहाव - विमलं सुवन्न संघडियं । सोयार- कण्ण-कुहरम्मि पाडियं पयडियं होइ ॥ २ ॥ मुक्ताफलमिव काव्यं स्वभावविमलं सुवर्णसंघटितम् । श्रोतृकर्णकुहरे पातितं प्रकटितं भवति ॥ २ ॥ * सुवर्ण - मुक्तापने हेम, काव्यपचे मु- सुष्ठ, वर्णा :- अकाराद्यक्षराणि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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