Book Title: Prakrit Suktaratnamala
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 49
________________ प्राकृत-सूक्तरनमाला। जा विहवो ता पुरिसस्स होइ आणा-पडिच्छओ लोओ। गलिओदयं घणं विज्जुलावि दूरं परिचयइ ॥ ७२ ॥ यावद् विभवस्तावत् पुरुषस्य भवत्याज्ञाप्रत्येषको लोकः। गलितोदकं धनं विद्यु दपि दूरं परित्यजति ॥ ७२ ॥ As long as a person retains his wealth so long only do the people wait ou him for his commands. Even lightening forsakes at a distance, a cloud drained of its moisture. जाई रूवं विजा तिन्निवि निवडंतु कंदरे विवरे। अत्थुच्चिय परिवड्ढउ जेण गुणा पायडा हुंति ॥ ७३ ॥ जाती रूपं विद्या त्रीण्यपि निपतन्तु कन्दरे विवरे। अर्थ एव परिवर्द्धतां येन गुणाः प्रकटा भवन्ति ॥ ७३ ॥ Let caste, beauty and learning fall ( perish ) into caves and boles: may wealth only increase by which good qualities are made manifest. सुच्चिय सुहडो सो चेव पंडिओ सो विद्वत्त-विन्नाणो। जो निअ भुअ-दंडज्जिअ-लच्छीइ उवज्जए कित्तिं ॥ ७४ ॥ स एव सुभटः स एव पण्डितः सोऽर्जितविज्ञानः । यो निजभुजदण्डार्जितलक्ष्म्योपार्जयति कीर्तिम् ॥ ७४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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