Book Title: Prakrit Suktaratnamala
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 56
________________ स्त्री । वंचिज्जर निअ-सामी दिजइ जीयंपि, किजए जिस्सा । कज्जे गरुअमकज्जं हा हित्थी सावि विहडेइ ॥ ८८ ॥ वञ्च्यते निजस्वामी दीयते जीवितमपि, क्रियते यस्याः । कार्ये गुर्वकार्यं हा हा स्त्री सापि विघटते ॥ ८८ ॥ For the sake of a woman, one deceives his own master, gives even his life and does sinful things. Alas! With all these a woman, ( not being satisfied ) breaks with her protector. मारइ पिय-भत्तारं हणइ सुअं तह विणासए अत्थं । निय - गेहंपि पलीवइ नारी रागाउरा पावा ॥ ८६ ॥ मारयति प्रियभर्तारं हन्ति सुतं तथा विनाशयत्यर्थम । निजगेहमपि प्रदीपयति नारी रागातुरा पापा ॥ ८६ ॥ A sinful woman inflamed with passion, kills her own dear husband, her own son, destroys wealth and burus her own house. दिवा कागाण बीहेसि रत्तिं तरसि नम्मयं । कुतित्थाणि य जाणासि अच्छीणं ढंकणाणि य ॥ ६० ॥ दिवा काकेभ्यो बिभेषि रात्रौ तरसि नर्मदाम् । कुतीर्थानि च जानास्यक्ष्णामाच्छादनानि च ॥ ६० ॥ * Cf. दिवा विभेति काकेभ्यो रावौ तरति नर्मदाम् । कुतौर्थानि च जानाति जलजं त्वचिरोधनम् ॥ ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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