Book Title: Prakrit Suktaratnamala
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 64
________________ मृत्युः। जंकल्लं कायव्वं नरेण अज्जव तं वरं काउं। मन्चू अकरुण-हियओ न हु दीसइ आवडतोवि ॥ १०६ ॥ यत्कल्ये कर्तव्यं नरेणाव तद्वरं कर्तुम् । मृत्युरकरुणहृदयो न खलु दश्यत आपतन्नपि ॥ १०६ ॥ It is preferable that a man should do to-day that which he ought to do to-morrow; for the hard-hearted death is not seen even when approaching (. lit : on the point of falling ). देविंदा समहिड्ढीया दाणविंदा य विस्सुया। नरिंदा जे अ विक्कंता मरणं विवसा गया ॥ १०७॥ देवेन्द्राः समहर्धिका दानवेन्द्राश्च विश्रुताः। नरेन्द्रा ये च विक्रान्ता मरणं विवशा गताः॥१०७॥ The Kings of gods, possessing immense riches, the celebrated danavas, the mighty lords of men - all are subject to the sway of death. माय-पिय-पुत्त-बंधू सयल-कुसलाइआई कारति । न मरंतस्सुवयारं तिल-तुसमित्तंपि हु जणंति ।। १०८ ॥ मातापितृपुत्रबन्धवः सकलकुशलादिकानि कारयन्ति । न म्रियमाणस्योपकारं तिलतुषमात्रमपिखल जनयन्ति ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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