Book Title: Prakrit Suktaratnamala
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 25
________________ प्राकृत-सूक्तरत्नमाला। मलमइल-पंकमइला धूलीमइला न ते नरा मइला । जे पाव-पंक-मइला ते मइला जीव-लोगम्मि ॥ २५ ॥ मलमलिनपङ्कमलिना धूलीमलिना न ते नरा मलिनाः । ये पापपङ्कमलिनास्ते मलिना जीवलोके ॥ २५ ॥ Persons, who are covered with filth or soiled with mud or covered with dust, are not unclean, but those who are covered with the stains of sin, are truly unclean in the world. जो कुणइ परस्स दुहं पावइ तं चेव सो अणंत-गुणं । लभंति अंबयाई न हु निंब-तरुम्मि ववियम्मि ॥२६॥ यः करोति परस्य दुःखं प्राप्नोति तदेव सोऽनन्तगुणम् । लभ्यन्त आम्राणि न खलु निम्बतरावुप्त ॥ २६ ॥ He who inflicts pain on others, has to suffer misery infinitely multiplied. Mangoes are not to be had by sowing a neemba-tree (Lat, melia azadiracta.) भार-क्खमेवि पुत्ते जो निय-भारं ठवित्तु निश्चिन्तो। न य साहेइ स-कज्ज सो मुक्ख-सिरोमणी भणिओ॥ २७॥ भारक्षमेऽपि पुत्र यो निजभारं स्थापयित्वा निश्चिन्तः । न च साधयति खकार्य स मूर्खशिरोमणिर्भणितः ॥ २७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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